दिव्य विचार: बदलना है तो अपने मन को बदलो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: बदलना है तो अपने मन को बदलो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तुम सब ऊपर से बदलते हो और इसी बदलाव को अपने जीवन की प्रगति मानने का भ्रम पालते हो। नहीं, ये तो जड़ बदलाव है, ये किसी काम का नहीं। ये किसी काम का नहीं है। ये तो यहीं छूट जाने है। बदलना है तो अपने हृदय को बदलो, बदलना है तो अपने मन को बदलो, बदलना है तो अपने भाव को बदलो, बदलना है तो अपने विचारों को बदलो। वह बदलाव ही जीवन का वास्तविक बदलाव है। हृदय परिवर्तन हो, मन परिवर्तित हो, विचार बदले, भाव बदले तो जीवन में स्थायी परिवर्तन घटित होगा। वह तुम्हारे जीवन की एक उपलब्धि बनेगी। मुझसे पूछो कि क्या बाकी है, तो मैं इतना ही कहूँगा- बदलाव अभी बाकी है। क्या बाकी है? बदलाव लाओ। भीतरी बदलाव; बाहर का बदलाव नहीं। तुम बाहर से बदलते हो। पल में तुम्हारा मूड बदल जाता है। मूड मत बदलो, मन बदलो, विचार बदलो, भाव बदलो। जो तुम्हें भोग से योग की ओर मोड़ दे, जो विलास से वैराग्य की ओर मोड़ दे, जो पाप से पुण्य की ओर मोड़ दे, जो पदार्थ से परमार्थ की ओर मोड़ दे, वह बदलाव अपने भीतर घटित करो। जिस दिन वह घटित हो जाएगा, बेड़ा पार हो जाएगा। जो करना है, अभी समय है, कर लो। समय अभी बाकी है और काम अभी बाकी है। समय रहते यदि तुमने कर लिया तो कर लिया, नहीं तो गए काम से। मनुष्य के मन का सबसे बड़ा शत्रु है- उसका प्रमाद। ऐसा नहीं होता कि हमारे पास अवसर नहीं आते, अवसर हमें मिलते हैं लेकिन हमारे मन का प्रमाद उसका लाभ नहीं उठाने देता। प्रायः हमारे साथ यही होता आया है कि जब-जब हमारे पास अच्छे अवसर आए, हमने अपने आलस्य और प्रमाद के कारण उनकी उपेक्षा कर दी, उनका लाभ नहीं उठाया। अवसर का लाभ उठाना सीखिए।