बनकुइयां फीडर में 65 लाख का गोलमाल
रीवा | पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के पश्चिम संभाग अंतर्गत बनकुइयां फीडर सेपरेशन के नाम पर लाखों रुपए की बंदरबांट का मामला प्रकाश में आया है। अधिकारियों एवं ठेकेदार ने कागज में लाइन क्षमता वृद्धि करके 65 लाख रुपए गोल कर दिया। हैरानी की बात यह है कि 15 किमी में न तार खींचे गए और न ही पोल खड़े किए। लेकिन प्रोजेक्ट की पूर्णता दर्शाकर कैटलाइजेशन कर दिया गया।
खास बात यह है कि कार्यपालन अभियंता पश्चिम संभाग के बार-बार पत्राचार के बाद भी अधीक्षण अभियंता मौन हैं। जबकि चार साल पहले के इस प्रोजेक्ट के आवश्यक मटेरियल एसटीसी के स्टोर से निकाले जा चुके थे। अब सवाल यह खड़ा होता है कि लाखों रुपए के मटेरियल कहां गए और एसई ने खामोशी क्यों अख्तियार किए हैं।
सूत्रों के अनुसार वर्ष 2016-17 में 132 केव्ही गोड़हर से बनकुइयां फीडर में बिजली आपूर्ति में आने वाली दिक्कतों, ट्रिपिंग एवं फाल्ट से छुटकारा पाने का प्रोजेक्ट बना था। इसमें लाइन की कन्डक्टर क्षमता वृद्धि एवं डाक से रैकून कन्डक्टर का कार्यादेश नं. 6149 हुआ था। उक्त प्रोजेक्ट की लागत 65.28 लाख थी। जिसमें 15 किमी लाइन क्षमता वृद्धि करना था। बताया जाता है कि 17 मई 2016 को जारी वर्क आर्डर के तहत अधिकारियों ने रतन सिंह को ठेका दे दिया।
एसटीसी से निकल गए मटेरियल
सूत्रों क मानें तो ठेका कंपनी ने एसटीसी स्टोर से आवश्यक मटेरियल, कन्डक्टर, हैवी क्षमता के तार, फ्यूज सहित अन्य उपकरण की निकासी कर ली थी। जब यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया, उस वक्त रीवा रीजन में फीडर सेपरेशन पर व्यापक स्तर पर काम हुआ। गौर करने वाली बात यह है कि तब एसटसी का दफ्तर भी रीवा में रहा और कार्यपालन अभियंता ओपी द्विवेदी पदस्थ थे।
उनके मार्गदर्शन में यह प्रोजेक्ट कागजी पूर्णता तक पहुंचा, लेकिन हकीकत में 15 किमी तो दूर कुछ मीटर लाइन खमता बढ़ाने का काम नहीं हुआ। जबकि विभाग की प्राथमिकता में यह प्रोजेक्ट भी शामिल था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि लाखों रुपए का मटेरियल विभाग और ठेका कंपनी ने कहां और किस प्रोजेक्ट में लगाया अथवा एसटीसी से मटेरियल निकासी भी कागजों में करके राशि की बंदरबांट हो गई।
समस्या जस की तस
बनकुइयां प्रोजेक्ट की कागजी पूर्णता के चलते इस फीडर में आपूर्ति की समस्या जस की तस बनी हुई है। कन्डक्टर टूटना, फयूज पिघलना पहले जैसा ही अब भी हो रहा है। फलस्वरूप बनकुइयां फीडर और उससे जुड़े दो अन्य उपकेन्द्रों छिजवार एवं तिघरा में सप्लाई प्रभावित होती रहती है।
सूत्र बताते हैं कि कार्यपालन अभियंता पश्चिम संभाग से बीते एक साल में कई पत्र लिखे गए लेकिन उस पर एसटीसी के डीई और अधीक्षण अभियंता रीवा रीजन प्रतिक्रिया नहीं देते। पत्राचार का यह सिलसिला फरवरी 20 से अब तक जारी है, जिन्हें उच्च अधिकारी ठण्डे बस्ते में डालते जा रहे हैं। यही नहीं गत माह 9 नवम्बर को सहायक अभियंता रीवा ग्रामीण ने भी बनकुइयां फीडर में व्याप्त समस्याओं को लेकर डीई को पत्र लिख चुके हैं। पश्चिम संभाग के डीई ने अब सतना स्थित एसटीसी दफ्तर से पत्र लिखकर कार्य पूरा करने का आग्रह कर चुके हैं। लेकिन जो प्रोजेक्ट पूर्णता के बाद क्लोज हो गया और उसे अधिकारियों ने विभाग में कैटलाइज कर लिया हो। लाखों रुपए की बंदरबांट हो गई हो, उस प्रोजेक्ट को कैसे शुरू करें, यह यक्ष प्रश्न खड़ा है।
अपनी आक्राम कार्यशैली के लिए मशहूर अधीक्षण अभियंता शरद श्रीवास्तव इस मामले को लेकर उदासीन रवैया उनकी कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है। सूत्रों की मानें तो उनके दफ्तर को फरवरी से अब तक एक दर्जन पत्र पश्चिम संभाग एवं सहायक अभियंता ग्रामीण से भेजे गए लेकिन अभी तक एसई की ओर से कोई एक्शन नहीं लिया गया।
बताया जाता है कि बनकुइयां फीडर प्रोजेक्ट को हवा-हवाई बनाने के कारनामे के पीछे अहम किरदार रहे ओपी द्विवेदी एसई दफ्तर में पदस्थ हैं। यही नहीं उन्हें एसई शरद श्रीवास्तव का करीबी माना जाता है। ऐसे में 65 लाख रुपए के कागजी प्रोजेक्ट की जांच होगी, इसके आसार कम हैं। वैसे संविदाकार रतन सिंह ने प्रोजेक्ट पर उसके द्वारा कराए गए कार्य का भुगतान विभाग से हासिल करने की बात स्वीकार की है। इस मामले में एसई शरद श्रीवास्तव का मोबाइल बंद होने के चलते पक्ष सामने नहीं आ सका।