दिव्य विचार : माता-पिता का अनादर मत करो - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार : माता-पिता का अनादर मत करो - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि बहुमान। मान सम्मान बहुमान। बहुमान का मतलब उत्कृष्ट आदर, सर्वोच्च विनय। बहुमान किनका, गुरुजनों का, माता-पिता का और जिन्होंने जीवन में तुम्हें आश्रय दिया उनका। इन तीन का पूर्णतः बहुमान करो, सपने में भी इनका अनादर न हो ऐसी प्रतिज्ञा मन में रखो ये बहुमान है। क्योंकि उनका तुम्हारे जीवन पर बड़ा उपकार है। माँ-बाप नहीं होते तो आज तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी है वह होता? तुम चाहे कितने भी ऊँचे क्यों न बन जाओ माँ-बाप को कभी मत भूलना, सदैव उनका बहुमान करना क्योंकि बच्चा चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए माँ- बाप के सामने तो बच्चा ही है। उनका बहुमान करो, उन्हें कभी भूलो मत, उन्हें किसी प्रकार का कष्ट मत होने दो और अपने जीवन में होने वाली बड़ी से बड़ी उपलब्धि को भी उनके चरणों में अर्पित करते हुए यह कहो- ये आपकी कृपा से मुझे मिला है। ये आपके आशीर्वाद का फल है। आप आशीर्वाद दें कि मैं ऐसे ही आपके नाम को रोशन करता चलूँ। ये बहुमान का भाव माँ-बाप के प्रति है। अपने अंदर भाव जगाओ जिसने तुम्हें आश्रय दिया, जिसके निमित्त से तुमने व्यापार किया, कारोबार किया, अपने परिवार को चलाने में सक्षम हुए, जिसने तुम्हें खड़ा किया उसका हमेशा बहुमान करो चाहे तुम कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो आज अरबपतियों में शुमार हैं। एक दिन वह व्यक्ति एक व्यक्ति को मेरे पास लाए और कहा-महाराज जी ! मेरे पिता जी इनके पिता जी के यहाँ नौकरी करते थे, इनका बड़ा उपकार है हमारे परिवार। पर हम लोग देश से यहाँ आए; अगर इनका परिवार नहीं होता तो आज हमारे पास कुछ भी नहीं होता। आज अरबपति बना हुआ है और जिस व्यक्ति से मेरा परिचय करा रहा है उस व्यक्ति की साधारण सी हालत। आज वह खुद नौकरी कर रहा है। लेकिन सामने वाला अपना बड़प्पन दिखाते हुए कह रहा है कि महाराज हमारे पिता जी ने इनके यहाँ नौकरी करते हुए अपने कैरियर की शुरुआत की थी आज हम जो कुछ भी हैं इनकी बदौलत हैं।