बैरंग लौटे भूमि खाली कराने गए एसडीओ-डीएफओ
रीवा | डभौरा वन परिक्षेत्र की सैकड़ों हेक्टेयर वन भूमि पर आदिवासियों ने कब्जा कर झोपड़ियां तान ली हैं। तकरीबन एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो जाने के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें बेदखल कर पाने में सफलता नहीं हासिल की है। ताज्जुब की बात तो यह है कि वन भूमि के अलावा भी गेदुरहा स्थित हमीद खान एवं फिरोज खान की 50 एकड़ से ज्यादा पुस्तैनी भूमि पर आदिवासियों ने झोपड़ी तान दी है। बेदखल करने मौके पर पहुंचे वन मण्डलाधिकारी एवं एसडीएम आदिवासियों की जबरदस्ती से वापस लौट आए हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि जिस वन भूमि पर दो हजार से ज्यादा आदिवासियों ने कब्जा कर झोपड़ी बना ली है, वह पोगला, लोनी एवं गेदुरहा की वन भूमि है। इन्हीं भूमियों पर इसके पूर्व भी आदिवासियों द्वारा कब्जा करने की कोशिश की गई थी। जिन्हें समझाइश देकर भूमि मुक्त करा ली गई थी। परंतु इस बार यह वन भूमि लेने पर जैसे आमादा हो गए हों। माना यह जा रहा है कि इनके द्वारा जंगल की जमीन में बनाई जाने वाली झोपड़ी के पीछे राजनैतिक लोगों का हाथ बताया गया है।
वनाधिकार पट्टे पर अड़े
डभौरा की वन भूमि पर झोपड़ी तानकर एक सप्ताह से ज्यादा समय से रहने वाले आदिवासी वनाधिकार पट्टे पर अड़ गए हैं। उनका कहना है कि उनके पास किसी भी प्रकार की भूमि नहीं है जहां पर वह घर बनाकर रह सकें। ऐसे में शासन द्वारा दिए जाने वाले वनाधिकार पट्टे एलॉट किए जाएं ताकि वह अपने घर बनाकर रह सकें। शनिवार को मौके पर पहुंचे वन मण्डलाधिकारी एके सिंह एवं अन्य अधिकारियों की समझाइश भी उन्हें वहां से नहीं हटा सकी। यही स्थिति त्योंथर एसडीएम की भी है। वह भी मौके पर पहुंचकर आदिवासियों को समझाते रहे परंतु वह नहीं माने।
ठगने का भी शुरू हुआ खेल
पहले तो आदिवासियों को वन भूमि पर कब्जा करने के लिए उकसाया गया। बाद में वनाधिकार पट्टे के लिए उनसे एक हजार रुपए एवं आधार कार्ड की फोटोकॉपी मांगी गई। ऐसा वहां पर झोपड़ी बनाकर रहने वाले कई आदिवासियों द्वारा बताया गया है। इसमें कितनी सच्चाई है यह स्टार समाचार इसकी पुष्टि नहीं करता परंतु माना यह जा रहा है कि कई छुटभैये नेता एमपी-यूपी से आए आदिवासियों को दुकान खोलकर ठगने में जुट गए हैं। वन विभाग के अधिकारी हजारों की तादात में इकट्ठा हुए आदिवासियों के आगे बेवस नजर आ रहे हैं।