एसडीएम-तहसीलदारों के दफ्तरों में चल रहा गोरखधंधा, बिना डीलिंग दर्ज नहीं होता डायवर्सन का केस
रीवा | राजस्व मामलों पर पेंडेसी निपटाने शासन- प्रशासन भले ही अमले पर सख्ती बरत रहा हो लेकिन एसडीएम-तहसीलदार का रवैया वही ढाक के तीन पात वाला है। हालत यह है कि यदि केस डायवर्सन का है तो वह आरसीएमएस तक में तब तक दर्ज नहीं किया जा सकता जब तक कि थ्रू-प्रॉपर चैनल डीलिंग न हो जाए। इस गोरखधंधे में राजस्व निरीक्षक से लेकर पटवारी और कोर्ट में बैठे बाबूतंत्र से लेकर दलाल तक जम कर सक्रिय हैं।
हाल ही में कुछ एसडीएम ने बड़ी संख्या में ऐसे केस खारिज किए हैं, जिसके कारण महकमे में तरह-तरह की चर्चाएं जोर पकड़ रहीं हैं। जानकारों के मुताबिक यदि सभी एसडीएम के यहां विगत दो से तीन माह में खारिज प्रकरणों की जांच हो जाए तो अफसरों को लेने के देने पड़ सकते हैं। चूंकि एसडीएम स्तर पर चल रही कार्रवाई से इतर प्रॉपर मॉनीटरिंग की कोई अन्य व्यवस्था नहीं होने के कारण अफसरों के हौसले बुलंद हैं औैर जरुरतमंद दलालों के चक्कर काट रहे हैं।
बनाए अलग से काउंटर
जानकारों के मुताबिक यूं तो अधीक्षक भू-अभिलेख कार्यालय एसडीएम को मॉनीटर नहीं कर सकता, लेकिन यदि एक काउंटर, या टेबल या खिड़की वहां पर भी इसके लिए बना दी जाए तो कम से कम इतना तो पता चल सकता है कि कितने प्रकरण किस तहसीलदार या एसडीएम के यहां पेंडिंग पड़े हुए हैं। सिस्टम चाहे तो इसके लिए रजिस्टर भी मेंटेन किया जा सकता है।
खास बात यह है कि जब भी इस मामले पर कोई आवाज उठाता है सिस्टम में बैठे लोग उसे ही बदनाम करना शुरू कर देते हैं। पहले एडजस्टमेंट किया जाता है नहीं होने पर आवाज उठाने वाले को ही गलत साबित करने में सब पिल पड़ते हैं। इसका नतीजा मामला हमेशा मूल मुद्दे से डायवर्ट हो जाता है। हालांकि इसके बावजूद भी असंतुष्टों के मुंह बंद नहीं होते।