कोरोना से ठीक होने के बाद भी नहीं मिल रही निजात, फाइब्रोसिस से फूल रही मरीजों की सांस
रीवा | कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के स्वास्थ्य में बेहतर सुधार नहीं हो पा रहा है। अब वे फाइब्रोसिस का शिकार होते जा रहे हैं। ज्यादातर दिक्कत बुजुर्गों में देखने को मिल रही है। हर दिन चार से पांच मरीज सामने आ रहे हैं। चिकित्सक इंटी फाईब्रोसिस और खून पतला करने की दवाएं देकर उन्हें स्वस्थ्य करने का प्रयास कर रहे हैं।
कोरोना वायरस मरीजों के फेफड़ों को सबसे ज्यादा डैमेज करता है। संक्रमण की वजह से फेफड़ों में सिकुड़न आ जाती है। यह समस्या कोरोना को मात देने के बाद भी बनी रहती है। जिले में अब तक करीब 41 सौ कोरोना के मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें से चार हजार से अधिक मरीज कोरोना को मात देकर ठीक हो चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी उनका स्वास्थ्य पहले की तरह बेहतर नहीं हो पाया है। यह संजय गांधी अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों के आकड़ों से पता चलता है।
इनमें से करीब 15 से 20 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं, जिन्हें फाइब्रोसिस ने घेर लिया है। उन्हें अभी भी सांस लेने में तकलीफ हो रही है। इसके अलावा शरीर में थकावट भी बनी रहती है। हर दिन इस तरह के चार से पांच मरीज संजय गांधी अस्ताल के मेडिसिन ओपीडी में पहुंच रहे हैं। कुछ मरीजों को समस्या ज्यादा होने की वजह से भर्ती भी करना पड़ा है। ऐसे मरीजों का उपचार चिकित्सक एंटी फाइब्रोसिस एवं खून पतला करने की दवा देकर कर रहे हैं।
कम हो जाता है ऑक्सीजन लेवल
फाइब्रोसिस का शिकार हुए मरीजों के शरीर का आॅक्सीजन लेवल कम हो जाता है। शरीर में आक्सीजन कर स्तर 99 प्रतिशत होना चाहिए। यह यदि 96 प्रतिशत से कम हो जाता है तो इससे साफ हो जाता कि लंग्स फाइब्रोसिस से शरीर घिर गया है। इसके साथ ही सांस लेने में तकलीफ, सुस्ती आने लगती है। ऐसा होने पर तत्काल चिकित्सकों के पास जाकर उपचार कराना चाहिए। समय पर उपचार नहीं कराने पर यह जानलेवा भी हो सकता है।
कोरोना के संक्रमण की वजह से फेफड़ों में सिकुड़न आ जाती है। जिसे ठीक होने में एक माह से भी अधिक का समय लग जाता है। लेकिन इसके लिए जरुरी दवाएं और परहेज जरुरी होता है। ऐसी स्थिति में ज्यादा मेहनत करने से बचना चाहिए। समय पर दवाएं लेते रहने पर स्थिति पहले की तरह सामान्य हो जाती है। लेकिन संयम नहीं बरतने पर यह जानलेवा भी भी साबित हो जाता है।
कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों को लंग्स फाइब्रोसिस की शिकायत हो जाती है। बुजुर्गों में यह ज्यादा देखने को मिलता है। लेकिन इससे डरने की जरुरत नहीं होती है। विशेषज्ञों की सलाह पर उपचार लेने से यह बीमारी दूर हो जाती है। फेफड़े पहले की तरह काम करने लगते हैं।
डॉ. राकेश पटेल, विशेषज्ञ, मेडिसिन विभाग