दिव्य विचार: शुभ भावों से नई ऊँचाई छुएंगे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि स्वयं के प्रति और औरों के प्रति मेरे भाव कैसे हैं? शुभ भाव हैं या अशुभ भाव? कैसे भावों की बहुलता है? अगर तुम्हारे मन में शुभ भावों की बहुलता है तो तय मानकर चलना तुम अपने जीवन को नई ऊँचाई देने जा रहे हो। अशुभ भावों की बहुलता है तो समझना तुम्हारे भाव गिर रहे हैं। तुम्हारा पतन अवश्यम्भावी है। शुभ भाव हैं या अशुभ भाव, यह तुम्हें देखना है। अपने आपको अशुभ भाव से बचाओ और शुभ भाव में रमाने की कोशिश करो। बड़ी मुश्किल है, हमें शुभ भाव बनाने पड़ते हैं और अशुभ भाव तो अपने आप आते हैं। अपने मन को पलटो, देखो कि मेरे अन्दर किस तरह के भावों का बाहुल्य है। आप पाएँगे कि ज्यादातर हमार मन अशुभ में रमता है। सन्त कहते हैं- उससे अपने आप को बचाओ। कैसे बचाएँ? अशुभ भाव से बचने और बचाने का एक ही उपाय है- शुभ भाव को पूर्ण करने वाले, पुष्ट करने वाले निमित्तों का आश्रय लो। जितनी भी धार्मिक क्रियाएँ हैं चाहे पूजा आराधना हो, भक्ति-उपासना हो, व्रत-उपवास हो, त्याग-साधना हो, यह सब हमें हमारे अशुभ भावों से शुभ भावों की ओर प्रेरित करने के माध्यम हैं। इनके माध्यम से हम अशुभ से शुभ की ओर मुड़ते हैं। अपने आपको मोड़ना सीखिए। जब भी तुम्हें ऐसा लगे कि मेरे भाव अशुभ हो रहे हैं, तत्क्षण अपने आपको मोड़ो। ध्यान रखना। मन में उत्पन्न होने वाला अशुभ भाव संस्कार वश प्रकट होता है पर उसको शुभ में बदलना हमारा पुरुषार्थ है। संस्कारों को जीतने के लिए हमें पुरुषार्थ जगाना पड़ेगा। अपने अन्दर पुरुषार्थ जगाइए। जब हम अपने भीतर के पुरुषार्थ को जगाना प्रारम्भ करते हैं, तब हमारे भीतर शुभ भावों की अभिवृद्धि होनी शुरु होती है और जब शुभ भाव बढ़ते हैं तो हमारे जीवन का कायापलट हो जाता है।