दिव्य विचार: श्रद्धा और विश्वास से भटकेंगे नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: श्रद्धा और विश्वास से भटकेंगे नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सबसे पहले अपने मन को टटोलकर देखो। जहाँ शंका होती है, क्या वहाँ श्रद्धा या विश्वास होता है? जिस पर श्रद्धा या विश्वास हो, उस पर रंचमात्र भी शंका या सन्देह होता है? क्या अनुभव है? घर की चाबी निश्चिन्त होकर उस बेटे को सौंप देते हो, जिस पर तुम्हारा भरोसा है। पर जिसकी नीयत के प्रति शंका हो, तो सपने में भी देना चाहोगे क्या? भाई इसको सौंप दिया, यह सब गड़बड़कर देगा, इस पर मुझे शंका है। जहाँ डाउट होता है वहाँ फेथ नहीं हो सकता और जहाँ फेथ होता है वहाँ डाउट नहीं होता। मोक्षमार्ग का सारा रास्ता विश्वास पर चलता है, श्रद्धा से चलता है। मैंने इस मोक्षमार्ग को अंगीकार किया है, किसके दम पर? मेरे मन में श्रद्धा है कि यही मार्ग है और मुझे इस मार्ग से मुक्ति मिलेगी। यह मेरे जीवन के पापों को नष्ट कर क्षय करेगा। इसके बल पर मैं निराकुलता पाऊँगा। इसके द्वारा मैं कर्म कालुष को नष्ट कर पाऊँगा। यही मेरा एकमात्र मार्ग है, मुझे यह विश्वास है, मेरे हृदय में श्रद्धा है। तुम लोगों की नजर में जो बहुत कष्टकारी मार्ग है, कठिनाइयों से भरा रास्ता है, कदम-कदम पर जिसमें परेशानियाँ हैं, मैंने हँसते-हँसते उस रास्ते को स्वीकार किया है। मैंने ही क्या, इस मार्ग पर चलने वाले मुझ जैसे सभी मुनिराजों ने स्वीकार किया है। किसके बल पर? कौनसी श्रद्धा है? रास्ता यही है। इतना ही विश्वास नहीं, यही रास्ता है और इस रास्ते पर चलेंगे तो जरूर पहुँचेंगे। इसमें भटकने की कोई सम्भावना नहीं है। यही एक मार्ग है, रास्ता है। इदमेव ईदृशमेव तत्त्वम् । मेरे मन में यह विश्वास है। मेरे मन का विश्वास मुझे उत्साहित करता है, उससे मैं उत्प्रेरित होता हूँ। मेरे हृदय में उमंग प्रकट होती है और मैं नित्य प्रति नई- नई साधना और नया-नया अभ्यास करने के लिए उत्सुक रहता हूँ। यह किसका चमत्कार है? मेरे मन में यह बात आ जाए कि कहते तो हैं मोक्ष, मोक्ष, मोक्ष? कुछसमझ में तो आता नहीं है, मुक्ति तो दूर की बात, सिद्धि तो दूर की बात, एक ऋद्धि भी नहीं है, कुछ भी हासिल नहीं और ऐसी कठिन तपस्या कर रहे हैं, किसने देखा स्वर्ग को? किसने देखा मोक्ष को?