दिव्य विचार: दूसरों के नहीं अपने दोषों को देखें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि व्यक्ति में यह एक बड़ी खोटी प्रवृत्ति है। हर व्यक्ति में उसकी अच्छाई। देखो, बुराई मत देखो। आप किसी बगीचे में जाते हो तो वहाँ डालियों पर अपना सौरभ लुटाते हुए फूल भी दिखाई देते हैं और वहीं उसके नीचे सड़े-गले पत्ते भी दिखते हैं, गन्दगी भी दिखती है। यह हमारे ऊपर है कि फूलों की मकरन्द से हम अपने अन्दर आनन्द भरते हैं या पत्तों की सड़न से अपने मन को सड़ाते हैं। क्या करते हैं, यह हमारे ऊपर है। सन्त कहते हैं संसार की जिस बगिया में तुम विचरण कर रहे हो वहाँ फूलों का सौन्दर्य भी है, उनकी सुगन्ध भी है और पत्तों की सड़ान्ध भी है। अब तुम पर निर्भर है कि तुम क्या चुन रहे हो। जीवन की बगिया से अगर कुछ चुनना चाहते हो तो फूल चुनो, सड़ान्ध नहीं। दोष देखो । किसके ? अपने? दूसरों के नहीं। दूसरों के गुण देखो और खुद के अवगुण । सामने वाले की अच्छाई देखो और अपने मन की बुराई देखो। दिखती है अपनी बुराई ? कहावत है 'हमाम के अन्दर सब नंगे हैं' लेकिन कोई इंसान अपने भीतर की उस बुराई को पहचानने की कोशिश नहीं करता। अपने आपको सब दूध का धुला समझते हैं। दूसरों में दोष दिखते हैं। जबकि सन्त कहते हैं कि तुम दूसरों पर एक अंगुली उठाओगे, तो बाकी तीन अंगुलियाँ तुम्हारी तरफ उठेंगी। दूसरों के दोष देखकर तुम क्या पाओगे? खुद के दोषों की तरफ देखोगे तो उनका संशोधन कर पाओगे। कभी दूसरों के दोष मत देखो। सामने वालों के दोष देखकर भी अनदेखा करो। बुराई में अच्छाई देखने की कोशिश करो। महाभारत के उस प्रसंग को याद करो जब श्रीकृष्ण चले जा रहे थे, रास्ते में मृत कुत्ता पड़ा था। उस मृत कुत्ते की सड़ांध की बदबू से सबकी नाक फटने लगा। श्रीकृष्ण ने कहा- देखो ! इसके दाँतों की पंक्ति कितनी सुन्दर है, यह दृष्टि है। देखने की दृष्टि होनी चाहिए। तुम क्या देखते हो? दरअसल जिस व्यक्ति का एटीट्यूड पॉजिटिव होता है वह सदैव बुराई में भी अच्छाई ही देखता है और जिसका एटीट्यूड निगेटिव होता है उसे अच्छाई में भी बुराई दिखती है।