दिव्य विचार: सबको नश्वर और क्षणिक मानो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: सबको नश्वर और क्षणिक मानो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिस क्षण मनुष्य को अपने जीवन की नश्वरता का बोध होता है, उसी क्षण से जीवन के प्रति आसक्ति क्षीण होने लगती है। सांसारिक संयोगों, सम्बन्धों की नश्वरता का बोध होते ही, उनके प्रति लगाव कम हो जाता है। लगाव को कम करने का तरीका है सबको नश्वर मानो, क्षणिक मानो, चार दिन की बात है, यह तो सुबह शाम का मेला है, जो हो गया, सो हो फिर सब खतम। यह बोध आपके मन में आ जाये, तो बहुत शान्ति प्राप्त हो जायेगी। मैं यह नहीं कहता कि 'आप नश्वरता को देखकर, मेरी तरह साधु बन जाओ।' साधु बन गये तो बहुत अच्छी बात है, पर जिस क्षण तुम नश्वरता को सही अर्थों में समझ लोगे, तो फिर संसार में रह नहीं सकोगे। जगत की नश्वरता को समझने से ही, आत्मा की अमरता का पाठ समझ में आता है, और जो जगत की नश्वरता - आत्मा की गया, अमरता को पहचान जाते हैं, वे नश्वर में कभी नहीं उलझते, हमेशा अविनश्वर का सत्कार करने का यत्न करते हैं। राजा वज्र नित्य प्रति एक हजार पांखुडियों वाले कमल का उपयोग किया करता था। एक माली प्रतिदिन सहस्रदल कमल राजा को दिया करता था। एक दिन राजा सहस्रदलकमल को देख रहा था। देखते ही हैरत में रह गया। यह क्या ? इसमें एक भौंरा मरा हुआ पड़ा है। उसे बहुत आश्चर्य हुआ ! जो भौंरा काठ को छेद सकता है, इस कमल को नहीं छेद सका। आसक्ति व्यर्थ है, उसे तुरन्त ही ऐसा बोध हुआ। आसक्ति के कारण, भौंरा कमल की गन्ध से आसक्त होकर मरा। मैं भी संसार के विषयों में आसक्त होकर मरूँगा। उसे जीवन की नश्वरता का बोध हो गया। अपने जीवन को मृत्युंजयी बनाने के लिये सोचने लगा। सोचते ही दीक्षा लेने का संकल्प किया, और अपने पुत्रों को बुलाकर कहा - पुत्रो ! अब मैं संन्यास अंगीकार करना चाहता हूँ। मुझे राजकाज रास नहीं आ रहा है। पुत्रों ने कहा-प्रभु राज काज क्यों रास नहीं आ रहा है ? राजा - मैंने देख दिया यह सब बेकार की चीजें हैं, तुच्छ हैं, असार हैं, इनको अंगीकार करने में कोई सार नहीं । अब मैं अपने भीतर के साम्राज्य को अंगीकार करना चाहता हूँ।