अमानक धूल से बढ़े टीबी और दमा के मरीज

अमानक धूल से बढ़े टीबी और दमा के मरीज

रीवा | जिले के बनकुइयां और भोलगढ़ एरिया में नियम-कायदे को दरकिनार कर क्रशर प्लांट संचालित हो रहे हैं। ज्यादातर प्लांटों में बाउंड्रीवाल और कैप नहीं है। जिससे चारो ओर धूल का गुबार उड़ रहा है। प्लांटों के आस-पास एरिया के गांवों में दमा के मरीज बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं प्रदूषण इस कदर है कि लोगों का घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। घर के बाहर रखी सामग्री पर धूल की मोटी लेयर जम जाती है। इस क्षेत्र में टीबी आदि के भी मरीज बढ़ रहे हैं।

हुजूर तहसील के भोलगढ़ में दर्जनभर क्रशर प्लांट संचालित हैं। कुछ प्लांटों को छोड़ दे तो ज्यादातर प्लांट नियम-कायदे की अनदेखी कर संचालित हो रहे हैं। भोलगढ़ गांव के दक्षिणी छोर में गांव के पड़ोस से लेकर एक किमी एरिया में आधा दर्जन से अधिक क्रशर प्लांट संचालित है। इसके अलावा भोलगढ़ के पूर्वी व दक्षिणी छोर में एक दर्जन क्रशर प्लांट गरज रहे हैं। बेला मोड़ से भोलगढ़ गांव तक पहुंचने में दर्जनों क्रशर प्लांट संचालित हैं। गांव के पश्चिमी छोर में आधा दर्जन क्रशर प्लांटों से धूल का गुबार उड़ रहा है। गांव के ज्यादातर ग्रामीण दमा के मरीज हो गए हैं। 

ग्रामीणें ने बताया कि इसकी सूचना ग्राम सरपंच से लेकर कलेक्टर कार्यालय में कई बार दी गई। कोई सुनने वाला नहीं है। दस साल के भीतर आस-पास के कई गांवों में टीबी, दमा के मरीज बढ़ रहे हैं। धूल के गुबार से जिंदगी की सांसे फूलने लगी हैं। धूल क्षेत्रीय लोगों के फेफड़े को जाम कर रहा है। टीबी के मरीजों की संख्या भी बढऩे लगी है। भोलगढ़ गांव के आधा दर्जन लोग टीबी का इलाज करा रहे हैं। 

इन रोगों के बढ़ रहे मरीज
गिट्टी के धूल से एलर्जी, छींक, नाक बहने या बंद होने, आंख में खुजली, घरघराहट, खांसी, गले में खरास आदि जैसे दूसरे लक्षण हो सकते हैं। धूल और घुन की एलर्जी से दमा के लक्षण भी शुरू हो जाते हैं।

फैक्ट फाइल
धूल के कण का मानक 200 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पहुंचा।
सल्फर डाई आॅक्साइड और एनओएक्स नाइट्रोजन डाई आॅक्साइड गैस की मात्रा 80 माईक्रोग्राम की जगह 100 से ज्यादा हो गया है।

धूल से मनुष्य का फेफड़ा बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है। उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है या फिर दम घुटने लगता है। टीबी की बीमारी भी ऐसे में हो सकती है। जहां क्रशर या सीमेंट प्लांट होते हैं, उस एरिया में इस तरह के मरीज ज्यादा मिलते हैं। ऐसे में यहां रहने वाले व्यक्तियों को अपने मुह एवं नाक को बाहर निकलते वक्त ढके रहना चाहिए। तकलीफ होने पर तत्काल डॉक्टरों के पास जाना चाहिए। जिससे समय पर उन्हें उपचार मिल सके।
डॉ. राकेश पटेल, मेडिसिन विशेषज्ञ