दिव्य विचार: शब्दों के घाव शस्त्र से होते हैं गहरे - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: शब्दों के घाव शस्त्र से होते हैं गहरे - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यदि सत्य के प्रति निष्ठा होगी तो तुम कभी ऐसा असत्य व्यवहार कर ही नहीं सकते। एक बात बताऊँ यदि मन में सत्य हो तो हमारे वचनो से बोला गया सत्य सच होता है और तभी हमारा व्यवहार सच कहलाता है। आजकल उल्टा होता है। लोग वाणी में बड़ी मिठास रखते हैं, व्यवहार में विनम्रता और मन में कड़वाहट घोले रहते हैं। ये सब सत्य नहीं असत्य है। मन में भी मिठास होनी चाहिए। वाणी में मिठास हो, व्यवहार में मिठास हो और यदि मन में मिठास नहीं तो सब व्यर्थ है। लेकिन मैं केवल एक बात बताना चाहता हूँ कि भावना का सत्य क्या होता है जो शत्रु के साथ भी मित्रवत् व्यवहार करें वह भावना का सत्य है। मन में ऐसी पवित्रता हो तो सतय हृदय में आए। वाणी का सत्य ही सबसे ज्यादा प्रचलित है। सच बोलने का मतलब सत्य नहीं है, सत्य अभिप्राय का मतलब सत्य है। कई बार लोग सच बोलते है पर अभिप्राय गलत होता है, वह असत्य है और कई जगह झूठ बोला जाता है पर आशय सही होता है तो वह सत्य हैं। सत्य के व्रतियों ने उसे ही सत्य कहा है जिसमें सत्यता के साथ प्रियता और हित हो। जो अप्रिय और अहितकारी है वह सत्य होकर भी असत्य है। प्रिय और हितकारी होने पर असत्य भी सत्य हैं। बंधुओ! अपने मुख में मिठास रखो। मर्मघाती, कर्कश, कठोर और पापपूर्ण वचनों को अपने मुख से कभी मत निकालो। ये वाणी का असत्य है, इसे रोके, इस पर अंकुश रखें क्योंकि आप इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि शब्द का घाव शस्त्र के घाव से भी गहरा होता है। शस्त्र के आघात से उत्पन्न घाव तो कुछ दिनों में भर सकता है लेकिन शब्द के आघात से होने वाला घाव सारी जिंदगी रिसता रहता है, टीस मारता है। अपने मुख से कभी किसी के दिल में घाव मत करो।