दिव्य विचार: अन्तर्निहित शक्तियों को पहचानें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज की चार बातें शक्ति, अभिव्यक्ति, समस्या और तपस्या । शक्ति..... तुम्हारे पास जो शक्ति है पहले उसे पहचानो। जो प्राणी अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को पहचानता है वही सच्चे अर्थों में अपना कल्याण कर सकता है। जानो तुम क्या हो। तुम्हारे पास अनन्त . सम्भावनाएँ हैं। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो तुम अनन्त शक्तियों के पुंज हो पर मुश्किल ये है कि इसका तुम्हें पता ही नहीं है। तुम क्या हो, तुम्हें पता नहीं है। ऊपर से देखने में हाड़-माँस का पुतला दिखता है लेकिन इसके भीतर जो आत्म-तत्व है वह अनन्त शक्तियों का पुंज है, उस शक्ति को पहचानो। जो उसे पहचानता है वही आगे जाकर अपने जीवन का कल्याण कर पाता है। स्वर्णपाषाण में जैसे सोना होता है, दूध के भीतर जैसे घी है, तिल के भीतर जैसे तेल व्याप्त होता है वैसे ही देह के भीतर तुम्हारा परमात्मा है जो अनन्त शक्तियों का भण्डार है, धाम है, निधान है। कभी उस शक्ति को पहचाना? स्वर्ण पाषाण में सोना है ऐसा हर कोई नहीं जान पाता, जिसे उसकी परख होती है वही जानता है और जानने के बाद जब प्रयत्न करता है तब उसमें से उस सोने की अभिव्यक्ति होती है। पहले शक्ति को पहचानो फिर उसके बाद उसे पाने के लिए, उसकी अभिव्यवक्ति के लिए पुरुषार्थ करो। पहचान के बाद पुरुषार्थ होता है। शक्ति को जानने वाला ही अभिव्यक्ति कर पाता है। इस स्वर्ण पाषाण में सोना है, इसे जो जानता है वह उसे तपाता है, गलाता है, जिससे उसकी किट्ट-कालिमा नष्ट होती है, उसके अन्दर की विकृतियाँ समाप्त होती हैं तब उसके भीतर का शुद्ध स्वर्ण प्रकट होता है। सन्त कहते हैं इस शक्ति को तुम पहचानो। तुम्हारे भीतर सोना है पर अभी तुम सोने के पाषाण की भांति हो। सोने के पाषाण से सोने की अभिव्यक्ति करना ही हमारे जीवन का मूल लक्ष्य और ध्येय है। सच्चे अर्थों में यही साधना है, यही आराधना है।