दिव्य विचार: विपत्ति में धैर्य की परीक्षा होती है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि नम्बर वन जब विपत्ति आती है तो हम विचलित हो जाते हैं। विपरीत परिस्थिति आती है, हम विचलित हो जाते हैं। अपना धैर्य खो बैठते हैं। दूसरी बात जब हमारी प्रगति में बाधा होने लगती है तो हम अपना धैर्य खो देते हैं। तीसरी बात जब हम मनचाही सफलता या मनचाहा संयोग प्राप्त नहीं कर पाते, अपने अन्दर का धैर्य खो देते हैं और जब हमारे सम्बन्ध हमारे अनुकूल नहीं दिखते, हम अपना धैर्य खो देते हैं। यह चार कारण ऐसे हैं, जिनसे मनुष्य अधीर, व्यग्र और बैचैन हो जाता है। सबसे पहले विपरीत परिस्थितियों की बात देखें। सामान्य आदमी जब भी उसके सामने कोई ऐसी विपत्ति की स्थिति आती है, उसका मन घबड़ा उठता है, अन्दर से टूट जाता है अब क्या करूँ? सन्त कहते हैं- 'परिस्थिति तो परिस्थिति है'। यह प्रकृति का नियम है। अनुकूलता और प्रतिकूलता हर मनुष्य के जीवन में आती है। इसमें हमारा कोई अपना रोल नहीं है। हमारी अपनी कोई भूमिका नहीं कि हम इसे स्थायी रूप से अपने अनुकूल ही बना लें। जीवन में सुख-दुःख आते हैं, संयोग-वियोग आते हैं, जीवन-मरण आता है, लाभ-हानि होते हैं। यह तो संयोग है, हमारे अधीन नहीं है। हम जब भी अपनी परिस्थिति को देखकर घबड़ाते हैं कि ऐसा हो रहा है इसलिए ऐसा हो गया। ऐसा हो रहा है इसलिए ऐसा हो गया। ऐसा हो रहा है इसलिए ऐसा हो गया। इससे तो हम अपनी क्षमताओं को और कमजोर कर लेते हैं। हमें तो इनसे कुछ सीखना चाहिए। विषमता में भी समता का अभ्यास करना चाहिए। विसंगति में भी संगति बिठाने की कला सीखनी चाहिए कि जीवन में विपत्ति आई है, हमारी नीति कहती है- विपत्ति में धैर्य की परीक्षा होती है। मनुष्य के धैर्य की परीक्षा विपत्ति की घड़ी में होती है। जब तुम्हारे सामने की सिचुएशन तुम्हारे अनुकूल है, उस समय तुम धीरज रखो तो कोई महानता नहीं।