दिव्य विचार: झूठी प्रशंसा कभी मत करना- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि एक सीख लीजिए। झूठी प्रशंसा मत करना, पर मौके पर प्रशंसा किए बिना मत रहना और कमियाँ हो तो कल मैंने जैसा कहा था कि क्रिटीसाईज मत करना क्रिटीगाईड करना । मन में अगर थोड़ी सी समझ आ जाए तो जीवन की धारा ही परिवर्तित हो जाए। आप क्या करते हो, कभी किसी की प्रशंसा करने का अवसर आता है तो प्रशंसा करते हैं? नहीं करते, बेटे का रिजल्ट आया माँ के पास उसका रिपोर्ट कार्ड आया, माँ ने रिपोर्ट देखी गणित में 95 मार्क्स, इंग्लिश में 78 मार्क्स,, फिजिक्स में 75 मार्क्स, कैमेस्ट्री में 80 मार्क्स, नीचे आते-आते हिन्दी में 30 मार्क्र्स। सब में जितने-जितने मार्क्स थे सब में टिक कर दिया और हिन्दी में कुछ नहीं कहा। जब माँ रिपोर्ट कार्ड देख रही थी उस समय उसकी एक सहेली वहीं थी। उसने कहा तुमने उसे कुछ कहा नहीं। सब में अच्छे मार्क्स आए टिक किया बेटे से कहा बेटे बहुत अच्छे मार्क्स आए बहुत अच्छा और हिन्दी में इतना पूअर रिजल्ट आया तुमने उसे कुछ नहीं कहा। तो उसने कहा मुझे बेटे से कहने की जरूरत नहीं हैं पिछली बार जब फिजिक्स और मैथ्स में भी उसके कम मार्क्स आए थे तब भी मैंने उसकी प्रशंसा की हैं। उसे पता हैं माँ ने इसपे कोई मार्क नहीं लगाया तो मुझे इस पर फोकस रखना हैं, है यह पद्धति आप के पास। आठ विषय में से 7 विषय में डिस्टिंक्शन एक में कम बेटा इसमें कम क्यों आया। क्या बोलते हो तुम बोलो, यह उल्टी सोच हैं कि नहीं हैं। एक्सपेक्टेशन भी संतान से ज्यादा बढ़ जाती हैं। उसके कारण सारा मामला उलट पुलट जाता है। हमें बहुत मनोवैज्ञानिक तरीके से अपने जीवन व्यवहार को आगे बढ़ाना चाहिये तो मैं आपसे यह कहता हूँ जहाँ प्रशंसा का प्रसंग आए दिल खोलकर के प्रशंसा करिए। लोग नहीं करते हैं। आप लोग तो एक ही काम में नजरिया बदल लेते हैं वहीं सब्जी माँ ने बनाई हैं और वही सब्जी पत्नी ने बनाई हैं।