दिव्य विचार: दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सोच बदलनी चाहिये । प्रशंसा करना सीखिए। प्रेम पूर्ण व्यवहार की विस्तार की बहुत बड़ी आवश्यकता हैं और सॉरी कहना सीखिए। जब भी आपके रिश्तों में खिंचाव आने लगे, सम्बन्ध बिगड़ने लगे, आप बड़े हो या छोटे यदि आप से गलती हुई हैं बेहिचक स्वीकार कीजिए और सामने वाले से कहिए भैया हमसे गलती हो गई। हमने नादानी वश, भूल वश गलतफहमी वश यह व्यवहार कर दिया, नहीं यह मुझे नहीं करना चाहिये, यह मेरी गलती हैं। हम रियलाईज करते हैं। यह आप करना शुरु कीजिए, कर सकते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जो बड़े-छोटों के आगे सॉरी कहें। छोटे से गलती हो जाए तो बड़े यह अपेक्षा जरूर करते हैं कि वह सॉरी कहे लेकिन बड़े- छोटों से यह अपेक्षा बहुत कम रखते हैं कि बड़े-छोटों के प्रति सॉरी कहें। क्यों क्योंकि हम बड़े है। यह अहंकार यह इगो की बातें हैं। भावनाओं का सम्मान करना सीखना होगा और जहाँ जैसा प्रसंग आ जाए उसी अनुरूप जीवन जीने का अभ्यास करना होगा। आपसे कोई गलती हो तो आप कहें नहीं, मुझसे यह गलती हो गई। देखिए कितना फर्क होता हैं। बाप-बेटों में किसी बात को लेकर किच-किच हो गई। बेटा अपनी जगह सही था पिता उस समय समझा नहीं और प्रायः पिताओं के साथ ऐसा नेचर होता है कि वह अपनी बात थोपना ज्यादा जानते हैं। पिता ने बेटे को थोप दिया। बेटा एकदम मायूस हो गया। बड़ा संस्कारवान था। पिता को उसने जबाव नहीं दिया। लेकिन उसको बहुत बुरा लगा क्या कहे कुछ कह तो नहीं सकता। मूड डिस्टर्ब रहा, बाद में पिता ने ठंडे दिमाग से सोचा, था तो वो भी समझदार। उसको लगा नहीं, इसमें बेटे की गलती नहीं, मेरी गलती हैं। मेरी गलती हैं, बगल में ही बेटे का कमरा था, बेटे के पास गया और कहा बेटा देख मैंने रियलाईज किया कि मेरी गलती हैं। मैं गलत था मैं तुझसे सॉरी कह रहा हूँ चल तू जो काम कर रहा था वही काम कर। तेरा डिशीजन सही हैं।