दिव्य विचार: भारतीय संस्कृति में नारी का महत्वपूर्ण स्थान- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: भारतीय संस्कृति में नारी का महत्वपूर्ण स्थान- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में नारी को बड़ा महत्त्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और यह कहा गया है कि नारी घर की संचालिका हैं वह चाहे तो घर को स्वर्ग बना सकती हैं, और वह चाहे तो घर नरक भी बन सकता है गाड़ी कैसी भी हो सब कुछ ड्रायवर पर डिपेंड करता हैं ड्रायवर यदि योग्य हो, कुशल हो तो जर्जर गाड़ी को गंतव्य तक पहुँचा सकता हैं और अकुशल ड्रायवर ब्रांड न्यू गाड़ी को भी गर्त में गिरा सकता हैं ये जवाब देही भारत की परंपरा में नारी को दी गई हैं और इतना ही नहीं ये कहा गया कि जब तक कोई पुरुष किसी स्त्री से नही जुड़ता तब तक वह गृहस्थ नहीं बनता और कोई भी मकान जब तक उसमें स्वी नहीं होती वह घर नहीं बन पाता। स्त्री के संपर्क में आने के बाद मकान घर बनता हैं और पुरुष गृहस्थ बनता है। हमारे यहाँ कहा गया है कि ईंट गारे की इमारत का नाम मकान नहीं हैं घर नहीं हैं। घर वो हैं जिसमें घरवाली हो।

न गृहं गृहमित्याहु गृहणी गृह मुच्यते

ईंट गारे की इमारत का नाम घर नहीं, गृहणी का नाम घर है और जिसकी गृहणी है वह ही गृहस्थ है। भारत की संस्कृति में इसीलिये नारी को इतना महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया और कहा गया वह परिवार की धड़कन है, रीढ़ की हड्डी है, जैसे हृदय की धड़कन के अभाव में हमारा जीवन समाप्त हो जाता हैं और रीढ़ के अभाव में हम स्वस्थता से चल नहीं सकते। ऐसे ही परिवार और समाज को स्थिरता और स्वस्थता नारी के ऊपर निर्भर करती हैं। नारी शब्द और हमारे शरीर की नाड़ी को संस्कृत में कहते हैं रड़योरभेदः - र और ड़ में कोई अंतर नहीं हैं नारी को नाड़ी कह दे तो कोई अलग बात नहीं हैं। लेकिन हम अपने शरीर को देखे जो स्थान शरीर में नाड़ी का हैं वही स्थान समाज में नारी का हैं अगर हमारी नाड़ी गड़बड़ हो जाए तो हमारे शरीर का स्वास्थ्य खराब और समाज में नारी गड़बड़ हो जाए तो समाज का स्वास्थ्य खराब। नारी की स्वस्थता से घर-परिवार और समाज का स्वास्थ्य है और नाड़ी की स्वस्थता से हमारा शरीर स्वस्थ है।