दिव्य विचार: उदारता अपनाने की कोशिश करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: उदारता अपनाने की कोशिश करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि एक बार ऐसा हुआ कि पिताजी ने छोटे बेटे को कुछ रुपये दिए बड़ा बेटा बाहर था। जब बड़ा बेटा बाहर से लौट कर के आया। उसकी धर्मपत्नी ने कहा देखिये आप इतनी मेहनत करते हो, रात दिन खटते हो उसके बाद भी पिताजी ने आपकी अनुपस्थिति में छोटे भैया को इतने रुपये दे दिये। आप कुछ बोलोगे नहीं, उन्होंने कहा बोलने की क्या जरूरत हैं मेरे भैया को ही दिया हैं किसी गैर को थोड़ी न दिया हैं। उनका पैसा है वह जिसको चाहे दे सकते हैं। पिता जी ने जो किया वो सही किया। एक प्रतिक्रिया यह है दूसरी प्रतिक्रिया यह भी हो सकती थी कि मैं पापा से बात करूंगा अभी जाकर बात करूंगा। मैं जान देता हूँ सब कुछ करता हूँ तो मुझे क्या मूर्ख समझ कर रखा हैं। हम इसलिये पसीना बहाते हैं। जाकर के बात करता हूँ। वो जाकर के अपने बाप को कितना सुना दे। ये भी हो सकता हैं, क्या अंतर है। यदि चित्त उदार होगा हृदय में प्रेम होगा तो कभी भी नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ नहीं होंगी। तो प्रेम को अपने हृदय में विकसित करने की कोशिश कीजिए। चार बातें जो मैंने आपसे कहीं प्रेमपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कीजिए। प्रेमपूर्ण सम्बन्ध को स्थापित करने के लिये धन्यवाद देना शुरु कीजिए, प्रशंसा करना शुरु कीजिए, सॉरी कहना शुरू कीजिए। स्माईल देना सीखिए और प्रेम के साथ परिवार में खुशहाली बनाए रखने के लिये आप सामने वालो की कद्र कीजिए पक्षपाती मत बनिए, उदारता अपनाने की कोशिश कीजिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो आप के जीवन में धैर्य होगा सहनशीलता विकसित होगी। एक-दूसरे केप्रति सद्भाव विकसित होंगे और सबका जीवन प्रेमपूर्ण बना रहेगा। इतना कहकर अपनी वाणी को विराम दूँगा।