दिव्य विचार: परिवर्तन जीवन का स्वभाव है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: परिवर्तन जीवन का स्वभाव है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि महाभारत का एक प्रसंग स्मरण में आ रहा है - 'युधिष्ठिर से यक्ष ने पूछा कि आश्चर्य क्या है ? इसके पहले यह प्रश्न नकुल, सहदेव से भी पूछा गया इसका उत्तर नहीं दे पाये। भीम के दिमाग में भी उत्तर नहीं आया कि आश्चर्य क्या है ? और अर्जुन भी इस प्रश्न बाण को नहीं भेद सका। किन्तु युधिष्ठिर ने सोच कर जबाव दिया।' आप पूछते हो आश्चर्य क्या है ? अरे ! रोज़-रोज़ हजारों लोग मौत के मुँह में जाते हैं, इसके बाद भी शेष बाकी लोग जिंदा रहना चाहते हैं, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है ? संसार में सबसे बचा जा सकता है, लेकिन मौत से बचना नितान्त असंभव है। न केवल हमारा जीवन, बल्कि जीवन के साथ जितनी भी चीजें हैं, वे सब नश्वर हैं। यही अनित्यभावना कहती है। हमारा तन, धन और परिजन सभी नश्वर हैं। तन किसी का भी शाश्वत नहीं रहा है। एक दिन इस तन की परिणति है 'चिता की राख' । जो तन को सजाते-संवारते, मेटेन करने की कोशिश में लगे रहते हैं, किन्तु कितनी देर तक इसे मेटेन रख पाते हैं। यदि ऐसी फोटोग्राफी की व्यवस्था की जाये, जो हमारे पल-पल की फोटोग्राफी करे, और उन रूपों को हमारे सामने रखा जाये तो हो सकता है कि हम ही उसे पहचानने में असमर्थ हो जायें। परिवर्तन जीवन का स्वभाव है, पल-पल में परिवर्तन होता है, हालांकि यह बात अलग है कि हर आदमी अपने तन को हर वक्त अप-टू-डेट बनाये रखता है, बनाये रखने की कोशिश करता है। भले ही काल ने उसे आउट-आफ-डेट कर दिया हो। संसार में एक भी प्राणी ऐसा नहीं है, जो हमेशा अप-टू-डेट रहा हो, क्योंकि धन भी अशाश्वत है, और परिजन भी अशाश्वत हैं। जो इस हकीकत को जान लेता है, उसी को अनित्यता का बोध प्राप्त होता है। इससे तीन लाभ होते हैं - 1. आसक्ति का छूटना, 2. आकुलता का मिटना और 3. समता का विकास होना।