दिव्य विचार: पुण्य लक्ष्मी के प्रतिभागी बनें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: पुण्य लक्ष्मी के प्रतिभागी बनें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पुण्यलक्ष्मी के भागी बनो। भाग्यलक्ष्मी तो जो आ गया सो आ गया वह तुम्हारे हाथ में नहीं, पुण्यलक्ष्मी तुम्हारे हाथ में है। पुण्य से पैसा, और कमाए हुए पैसे को पुण्य में लगाना ये तुम्हारे हाथ में है। तुम जोड़-जोड़ कर रखोगे तो कोई काम नहीं होगा। पहले के जमाने में लोग पैसा जमीन के अंदर गाड़कर रखा करते थे। जो धन-सम्पत्ति को संगृहीत करके धरती के नीचे गाड़कर रखते हैं वे अपनी सम्पत्ति को पाषाण बना देते हैं। हम लोग कहानियाँ सुनते हैं कि किसी व्यक्ति ने सम्पत्ति कमाकर धरती के अंदर गाड़कर रखा और जरूरत पड़ने पर निकालना चाहा तो पता चला कि सम्पत्ति वहाँ से कहाँ खिसक गई, कोई पता नहीं। अथवा वह सम्पत्ति कोयला बन गई, कोई पता ही नहीं। अभिशप्तलक्ष्मी के भागी मत बनो। सम्पत्ति पाई है तो उसका लाभ लो। अपनी सम्पदा को अपने जीवन का वरदान बनाओ अभिशाप नहीं। जो अपनी सम्पदा को परमार्थ में लगाते हैं उनकी सम्पदा वरदान बन जाती है और जो सम्पत्ति को संग्रहित करके रख लेते हैं उनकी सम्पत्ति अभिशाप बन जाती है। हमारे यहाँ परिग्रह को पाप कहा है। आपकी जेब में सौ का नोट पड़ा है; जब तक जेब में है तब तक क्या है? परिग्रह है। जेब में पड़ा सौ या दो हजार का नोट परिग्रह है, पैसा जब तक जेब में पड़ा है तब तक परिग्रह है। परिग्रह क्या है? परिग्रह पाप है। अंदर से बोल रहे हो कि हमको बोलने के लिए बोल रहे हो? महाराज ! बोल नहीं रहे हैं, बोलना पड़ रहा है, मजबूरी है सामने बैठे हैं। परिग्रह पाप है, कोई दो मत तो नहीं? अगर उसी पैसे को निकालकर मंदिर की गुल्लक में डाल दिया तो वही पैसा क्या हो गया? दान हो गया। समझ में आया? जोड़कर रखना पाप है और धर्म में लगा देना पुण्य है। बस आपकी करैन्सी चैन्ज करने का यही उपाय है। यहाँ से उठाकर यहाँ डाल दो करैन्सी चैन्ज हो जाएगी। पाप को पुण्य में बदल डालने की क्षमता तुम्हारे पास है पर तुम लोग बड़े कंजूस हो, पुण्य की बात करते हो और पाप से प्यार करते हो, ये गड़बड़ी है। इस गड़बड़ी से अपने आप को मुक्त कर लो। एक दिन तो दुनिया से जाना ही है।