दिव्य विचार: अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रखें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कन्या संस्कारवान बने, शीलवान बने। अपने शील की सदा रक्षा करे। किसी भी कन्या की कोई निधि है तो एक मात्र कन्या का शील हैं। यदि अपने शील और संस्कार को सुरक्षित रख लिया तो सब कुछ खोकर के भी सब कुछ पा लिया और अगर उसके शील और संस्कार नष्ट हो गए तो सब कुछ पाकर के भी सब कुछ खो दिया। किसी भी हालत में इसे नष्ट नहीं होने देना चाहिये। अपने शील और संस्कार को सुदृढ़ रखकर अपने जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिये। कन्या ने अपने शील, संस्कार को मजबूत बना लिया तो उसका सारा जीवन अच्छा होगा। बंधुओं मैं ये कहना चाहूँगा कन्या मांगलिक है और पूरी की पूरी नारी जीवन की बुनियाद है। एक कन्या में आदर्श कन्या के गुण प्रगट हो जाऐंगे तो वही कन्या अपने जीवन के उत्तर रूपों का भी ठीक रीति से पालन कर पायेगी। कन्या में अगर कन्यापन ठीक नहीं हैं तो आगे जिसकी बुनियाद ही कमजोर है, वह भवन तो धाराशायी होना ही होना हैं। इसलिये मैं कहना चाहूँगा कि कन्याएँ संस्कारवान बने, शीलवान बने, अपने शील और मर्यादा को किसी भी हालत में नष्ट न होने दे, क्षीण न होने दे, चाहे जो कुछ भी कुर्बान कर दे लेकिन अपने शील को नष्ट न होने दें। वे मर्यादा की रक्षा करे, मर्यादा का ध्यान रखे। अपनी सीमाएँ सुनिश्चत कर लें कि ये सीमा है और इस सीमा का उल्लंघन मुझे कतई नहीं करना है। उसके लिये वो बंधन को स्वीकारे। आप लोग कह सकते हो कि महाराज इस तरह के बंधन में बंध जाने के बाद तो हम प्रगति नहीं कर पायेंगे। मैं प्रगतिशीलता का विरोधी नहीं हूँ । आप प्रगति करें लेकिन अपनी सीमाओं में रहकर । अपनी मर्यादाओं को खोकर के की गई प्रगति, प्रगति नहीं प्रतिगति हैं। वो उल्टी गति है उसके दुष्परिणाम सामने आएंगे। इसलिये प्रतिगति हमें नहीं करना हैं। हमें प्रगति करना है, आगे बढे लेकिन गहरे उतरकर मजबूती, के साथ। अपनी मर्यादाओं की रक्षा करते हुए आगे बढ़े और फिर पराक्रमी बने।