दिव्य विचार: दौलत शोहरत यही छूट जाएगी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: दौलत शोहरत यही छूट जाएगी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संत कहते हैं - जो मरने वाला है उसे बचाने की कोशिश में पागल होने की जगह जो अमर है उसे बचाने की कोशिश कर लो। जिस क्षण तुम अपने भीतर के अमरतत्त्व को पहचानने में समर्थ हो जाओगे उसी क्षण तुम्हारे भीतर से मृत्यु का आतंक दूर हो जायेगा, मृत्यु का भय खत्म हो जायेगा । अशरणभावना हमें कुल यही कहती है कि जगत में जितने भी पदार्थ हैं सब नाशवान हैं और इन नाशवान पदार्थों से कभी किसी को शरण नहीं मिल सकती। संसार के बाह्य संयोगों में शरण ढूँढ़ना ऐसा ही है जैसे कोई व्यक्ति जलते हुये बांस के पेड़ के नीचे जाकर उससे छाया चाहे, शीतल छाया मांगे। बांस के जलते हुये पेड़ के नीचे जाओगे तो तुम्हें कभी भी शीतलता की अनुभूति नहीं होगी। जो खुद जल रहा है वह दूसरों को शीतलता कैसे प्रदान कर सकता है। जो स्वयं मर रहा है वह दूसरों को अमर कैसे बना सकता है। जो स्वयं असुरक्षित है वह दूसरों को सुरक्षा कैसे दे सकता है। जो स्वयं भंगुर है वह दूसरे को शाश्वत कैसे बना सकता है। इस सत्य की प्रतीति ही अशरणभावना का मूल उद्देश्य है। संत कहते हैं कि संसार में जिन-जिन पदार्थों को तुमने अपने लिये उपादेय मानकर एकत्रित किया है, जिन्हें तुम शरण मानते हो, वह तुम्हारे काम में नहीं आने वाले। तुम सोचते हो कि सारी दौलत मैं जोड़ रहा हूँ। वह दौलत मुझे बचा लेगी। संत कहते हैं कि ये दौलत भी तुम्हारे काम नहीं आयेगी। न तुम्हारी दौलत तुम्हारे काम आने वाली है, न तुम्हारी शोहरत तुम्हारे काम में आने वाली है। दौलत और शोहरत यहीं छूट जाने वाली है। मृत्यु के क्षण में यह सब यहीं मुंह ताकते खड़े रह जाते हैं, किसी मनुष्य के काम में नहीं आते हैं। न धन-संपदा काम में आती है, पद-प्रतिष्ठा काम में आती है, न संसार के सम्बन्धी जन काम में आते हैं। तन, धन, परिजन कुछ भी कभी भी मनुष्य के काम नहीं आते।