दिव्य विचार: जीवन को संवारने की कोशिश करो-:मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिस तरह सिंह के सामने कोई हिरन चला जाये तो बच नहीं सकता। उसी तरह इस संसार के भयानक वन में इस चेतन रूपी मृग को काल रूपी सिंह ने घेर लिया है। उससे कोई बचा नहीं सकता। आज नहीं तो कल तुम्हारी बारी आयेगी। मरने से तुम्हें कोई बचा नहीं सकता। इस मृत्युबोध को स्वीकारना ही अशरणभावना का मूल ध्येय है। एक बार किसी ने मुझसे प्रश्न किया महाराज ऐसा क्यों ? मरने से कोई बचा नहीं सकता, मरेंगे जब मरना होगा। लेकिन मृत्यु को याद करके अभी अपने जीवन के क्षणों को क्यों गँवाये। मृत्यु तो सिर्फ एक मिनट की होती है। उस एक मिनट की मृत्यु की चिन्ता में हम अपनी सारी जिंदगी के सुख को क्यों छोड़े ? हमें जो सहज प्राप्त अनुकूल संयोग हैं, उनका उपभोग क्यों न करें ? मैने कहा- यह सच है कि जो मृत्यु हमारे सामने आती है वह केवल एक मिनट की होती है। पर यह ध्यान रखना कि उस एक मिनट की मृत्यु को संवारने के लिये हमें सारी जिंदगी प्रयास की ज़रूरत होती है। कोई बच्चा जब परीक्षा देता है तो परीक्षा तो केवल दो-चार घण्टों के लिये होती है, लेकिन उस परीक्षा की तैयारी में बच्चे को सारा वर्ष खपाना पड़ता है। एक व्यक्ति डाक्टर से अपनी चिकित्सा कराता है, बीमारी तो कुछ पलों के लिये आती है लेकिन उसका इलाज लम्बे समय तक करना पड़ता है। बन्धुओ ! मृत्यु जीवन की एक अनिवार्य घटना है। लेकिन उस मृत्यु को संवारने के लिये हमें अपने जीवन को संवारना जरूरी होता है। जो अपने जीवन को संवार पाता है, वही मृत्यु को संवार पाता है। जिसकी जिंदगी बिगड़ी है उसकी मौत कभी सुधर नहीं सकती। यदि बिगड़ी हुयी जिंदगी जिओगे तो मृत्यु भी बिगड़ी हुई होगी।