दिव्य विचार: समस्या का समाधान तपस्या में है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जब भी जीवन को समस्या से ग्रसित पाओ, तपस्या करो। सच्चे अर्थो में समस्या का समाधान ही तपस्या है। क्या कह रहा हूँ? समस्या का समाधान ही तपस्या है। चलिए पहले समस्या देखें फिर उसका समाधान देखें, तपस्या अपने आप समझ में आ जाएगी। यदि आपके जीवन में कोई समस्या है तो आज सबका समाधान कर दूँगा। तप का दिन है, बोलो किसको क्या समस्या है? तुम्हारी समस्या कैसी भी हो हमसे ट्रीटमेन्ट (इलाज) लोगे तो समाधान लेकर ही जाओगे। बताओ क्या समस्या है? चलो अब तुम्हारी समस्या भी मैं ही बता देता हूँ। तुम लोग तो सब सामने वालों से ही कराना चाहते हो, खुद नहीं करना चाहते। समस्या है- मन में उद्वेग, आवेग, अशान्ति। मन में कभी उद्वेग आए. आवेग आए, अशान्ति आए तो मन खिन्न हो उठता है, समस्याग्रस्त हो जाता है। ये उद्वेग, आवेग, अशान्ति क्यों आती है? जीवन में कभी अनुकूल संयोग होते हैं. कभी प्रतिकूल संयोग होते हैं। अनुकूल संयोग होते हैं तो मन खुश रहता है, प्रतिकूल संयोग होते हैं तो मन खिन्न हो जाता है। कभी विषयों की लालसा मन में जागती हैं, उसे पा लेते हैं तो कुछ देर के लिए थोड़ी खुशी होती है और जब नहीं पा पाते हैं तो मन खिन्न हो उठता है। जो हम चाहते है वह मिल जाता है तो मन प्रसन्न होता है, नहीं मिलता है तो मन खिन्न होता है। संयोगो की अनुकूलता का न बन पाना एक बड़ी समस्या है, प्रतिकूल संयोगों का आ जाना एक बड़ी समस्या है, मन पर तनाव का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है और चित्त में चिंता का हावी हो जाना एक बड़ी समस्या है। सारी समस्याएँ इनमें समाहित हैं। अनुकूल संयोगों का अभाव होना, प्रतिकूल संयोगों का जुड़ जाना, मन में तनाव आ जाना, चित्त में चिन्ता का आना आपकी समस्या है।