दिव्य विचार : किसी का अपमान मत करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि दूसरो की बात तो जाने दो अगर तुम्हारा कोई सगा भी होगा और यदि वह कमजोर हो गया तो बहुमान करने की बात तो बहुत दूर है, पहचानने में भी तुम पीछे हट जाओगे। बहुमान करो उनका जिनका तुम्हारे जीवन के निर्माण में किंचित भी योगदान है। ये हमारा धर्म है। ये हमारा कर्तव्य है। ऐसी भावना हृदय में विकसित होनी चाहिए। गुरुजनों का बहुमान। गुरुओं का बहुमान क्या है? उनकी जय- जयकार करो, उनकी पूजा करो, उनकी भक्ति करो, उनके आगे-पीछे फिरो? गुरु का ये बहुमान नहीं है। ये बड़ा उथला बहुमान है, ऊपरी बहुमान है। गुरु का सच्चा बहुमान ये है कि गुरु के द्वारा दिए गए निर्देशों के विरुद्ध कोई आचरण मत करो। ये है गुरु का सच्चा मक़सद बहुमान। तुम्हारे मन में गुरु के प्रति बहुमान है तो हमेशा इस बात का मन में भाव होना चाहिए कि मैं कोई काम करूँ और बात गुरु के पास पहुँचे तो उनको अच्छा न लगे ऐसा काम मैं नहीं करूँगा। मेरे किसी कृत्य से मेरे गुरु को कोई तकलीफ हो ऐसा कोई भी काम मैं नहीं करूँगा। ऐसा कोई काम नहीं करूँगा कि मेरे गुरु के पास जाकर किसी को कहना पड़े कि वह व्यक्ति आपका बहुत भक्त बनता है न, वह ऐसा काम कर रहा है। चौथी बात अपमान किसी का मत करो। जीवन में कभी किसी का अपमान मत करो। तुम किसी का सम्मान न कर सको, चलेगा लेकिन कभी किसी का अपमान मत करो क्योंकि कोई मनुष्य एक बार अपमानित हो जाता है तो गांठ बांध लेता है बैर की, विरोध की और फिर प्रतिहिंसा और प्रतिशोध की भावना से झुलस कर वह सर्वनाश करने पर उतारू हो जाता है। तुम अपने इस प्रकार के व्यवहार के कारण रोज अपने घर में कितनी बार महाभारत मचाते हो इसका कुछ अंदाज हैं। तय करो हम किसी को अपमानित नहीं करेंगे। किसी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे जिससे सामने वाला तिरस्कृत अपमानित महसूस करें।