दिव्य विचार: चालबाजी कभी न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: चालबाजी कभी न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बंधुओं, मैं आपको पहला सूत्र देता हूँ आज की तारीख में अगर अपने जीवन में सरलता, शांति, सत्यनिष्ठा और सहजता को प्रकट करना चाहते हो, जीवन का रस लेना चाहते हो तो कृत्रिमता को तिलांजलि दे दो। किसी प्रकार की कृत्रिमता को अपने ऊपर हावी मत होने दो। ये एक माया है। माया का निकृष्ट रूप जो तुम्हारे मन की शांति को लील लेता है। जितने हो, जैसे हो वैसे ही रहो चिंता की बात नहीं। लेकिन कृत्रिमता को अपनाओगे तो सिवाय चिंता के और कुछ नहीं होगा । सीधी-सच्ची बात में मत रख टेढ़े अर्थ दूसरी बात है कुटिलता। जीवन में कुटिलता का मतलब चालबाजी। लोग बड़े चालबाज होते हैं। हर जगह चालबाजियाँ करते हैं और बड़ी चालाकी से करते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो सोचते हैं कि मुझसे बड़ा चालबाज कोई है ही नहीं। पर कई बार ऐसे लोगों को मुँह की खानी पड़ती है। एक आदमी ने अपना खेत बेचा। खरीदने वाले ने खेत खरीद लिया। उसमें कुआँ भी था। अब कुआँ सहित खेत खरीदा। फसल बोई और कुएँ से पानी लेने के लिए गया तो सामने वाला आदमी बड़ा कुटिल था। उसने कहा- भैया ! हमने खेत बेचा है, कुआँ बेचा है पर पानी नहीं बेचा। तुम पानी नहीं ले सकते। अगर तुम पानी लोगे तो उसका टैक्स देना पड़ेगा, पैसा देना पड़ेगा। सामने वाला बड़ी उलझन में कि कुएँ को देखकर मैंने फसल बोई और ये पानी देने से इनकार करता है। अगर पानी नहीं दूँगा तो फसल नष्ट हो जाएगी। एक दिन का काम नहीं है। हमेशा फसल को पानी देना पड़ेगा और अगर एक बार मैंने पानी के पैसे देना स्वीकार लिया तो हर बार पैसे देने पड़ेंगे। पैसे किस बात के दें? जब मैने कुआँ खरीदा है तो पानी भी मेरा ही होना चाहिए। लेकिन वह कहता। है कुआँ बेचा है, पानी नहीं बेचा। कई बार शेर को सवा सेर मिल जाता है।