संरक्षित होने के बावजूद छत्रसाल समाधि स्थल वीरान
छतरपुर। वीर योद्धा महाराजा छत्रसाल की स्मृतियों को सहेजने में लापरवाही बरती जा रही है। पेशवा बाजीराव द्वारा निर्मित बुंदेली स्थापत्य कला की अनूठी धरोहर महाराजा छत्रसाल की समाधि की देखरेख में लापरवाही पर लोगों ने नाराजगी जाहिर की है। उल्लेखनीय है कि छतरपुर-नौगांव रोड पर ग्राम महेबा के समाधि स्मारक मौजूद है। ग्राम महेबा स्थित समाधि स्मारक ढाई सौ साल पहले बनाई गई थी। इस स्मारक तक पहुंचने के मार्ग पर अतिक्रमण है।
मार्ग पर न तो संकेतक हैं और न ही इसा प्रचार प्रसार किया गया है। स्मारक के बाहर मुख्य द्वार पर ही कचरे के ढेर लगे हैं। स्मारक के खिड़कियां दरवाजे टूट चुके हैं। इसे मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग से धरोहर घोषित किया गया है इसके बाद भी चमगादड़ों का बसेरा है। स्मारक को गंदा कर दिया गया है। स्मारक के दर्शन के लिए न तो गाइड है और न ही सुरक्षा के इंतजाम हैं। तड़ित चालक खराब हो चुका है जिसके कारण इसपर दो बार बिजली गिरने से काफी नुकसान भी हुआ है।
क्या है इतिहास
इतिहास के मुताबिक 17 वीं शताब्दी में जब मुगल शासक बंगश और महाराजा छत्रसाल के बीच युद्ध हुआ तब मराठा योद्धा पेशवा बाजीराव महाराजा छत्रसाल की मदद करने बुंदेलखंड आए थे। इस युद्ध में मराठा और बुंदेली सेनाओं ने मुगल सेना पर विजय हासिल की थी। युद्ध के बाद महाराजा छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को पुत्र मान लिया था। 1731 में महाराजा छत्रसाल की मृत्यु के बाद पेशवा ने ही महाराजा छत्रसाल की समाधि का निर्माण ग्राम महेबा में कराया था। गौरतलब है कि महेबा महाराजा छत्रसाल की राजधानी रहा है। आसपास लगभग 50 से अधिक स्मारक मौजूद हैं जो चंदेल एवं छत्रसाल कालखंड की निशानी हैं।
छत्रसाल महाराज के समाधि स्मारक की स्थापत्य कला और यहां का इतिहास हमारी पीढ़ी के लिए प्रेरणा केंद्र है लेकिन पुरातत्व विभाग एवं संस्कृति विभाग द्वारा इसका ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बुंदेलखंड संघर्ष मोर्चा ऐसे स्थलों के संरक्षण के लिए अभियान चलाएगा।
शैलेंद्र कौशिक, संयोजक, बुंदेलखंड जन संघर्ष मोर्चा