96 प्रतिशत महिलाओं की अस्पताल में हुई डिलीवरी

रीवा | शिशु एवं मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार संस्थागत प्रसव पर जोर दे रही है। इसके लिए कई तरह की जन कल्याणकारी योजनाओं को चलाया जा रहा है। जिसका असर जिले में देखने को मिल रहा है। घरेलू प्रसव का आकड़ा गिर कर 4 प्रतिशत पर पहुंच गया है। 8 माह में महज 933 बच्चों का जन्म घर पर हुआ है। जबकि 96 फीसदी यानी 27 हजार 875 डिलिवरी इंस्टीट्यूशनल कराई गई है। सभी बच्चे स्वस्थ्य हैं, जिनकी मॉनीटरिंग की जा रही है। उल्लेखनीय है कि केंद्र से लेकर राज्य सरकार संस्थागत प्रसव कराने को लेकर कई तरह की योजनाओं को चला रही है। इसमें जननी सुरक्षा योजना सबसे अहम है। इसके अलावा गर्भावस्था से लेकर बच्चों के पैदा होने तक उनकी मॉनीटरिंग कराई जाती है। 

आशा-ऊशा कार्यकर्ता को लगातार निगरानी बरतने का आदेश है। प्रसव के दौरान समीपस्थ अस्पताल पहुंचाना भी उनकी जिम्मेदारी है। स्वास्थ्य अधिकारी भी इस काम में लगे रहे। यही वजह है कि इस वर्ष घरेलू प्रसव के आकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है। बताया जा रहा है कि 1 अप्रैल से लेकर 30 नवंबर 2020 तक जिले में 28 हजार 808 प्रसव कराए गए हैं। इसमें से करीब 96 फीसदी यानी 27 हजार 875 महिलाओं का प्रसव संस्थागत हुआ है। हालांकि चार प्रतिशत डिलिवरी घरों में हुई है। जिसे और नीचे लाने का प्रयास किया जा रहा है।

स्वास्थ्य विभाग ने एक पोर्टल डेबलप किया है। जिसमें महिलाओं के गर्भवती होने से लेकर बच्चे पैदा होने एवं उसके बाद तक निगरानी की जाती है। इसकी जबावदेही आशा कार्यकर्ताओं की होती है।  अधिकारी इसकी सतत मॉनीटरिंग करते हैं। इसी का नतीजा है कि जिले में इस वर्ष घरेलू प्रसव कम हुए हैं। संस्थागत प्रसव का आकड़ा बढ़ कर 96 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

लॉकडाउन के दौरान घर में हुए प्रसव
कोरोना महामारी के कारण देश समेत जिले में भी 22 मार्च से लाकडाउन कर दिया गया था। करीब जून माह तक अलग-अलग चरणों में लॉकडाउन रहा। इस दौरान वाहन की व्यवस्था भी नहीं मिल पा रही थी। इसके अलावा प्रसूता व उनके परिजन अस्पताल आने से डर भी रहे थे। यही वजह है कि लॉक डाउन के करीब ढाई माह में घरेलू प्रसव की संख्या बढ़ गई थी। हालांकि अनलॉक होते ही फिर से संस्थागत प्रसव होने लगे थे।

जननी सुरक्षा योजना ने किया प्रोत्साहित
घरेलू प्रसव में कमी लाने के लिए सरकार जननी सुरक्षा योजना चलाई जा रही है। इस योजना के तहत अस्पताल में प्रसव होने पर शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1 हजार एवं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को 14 सौ रुपये बतौर प्रोत्साहन दिया जाता है। इसके अलावा संबल कार्ड धारी प्रसूताओं को अलग-अलग किस्तों के माध्यम से 16 हजार रुपये तक दिया जाता है। लेकिन यह राशि 2 बच्चो के पैदा होने तक ही दी जाती है। इससे अधिक होने पर उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता है।

पिछले कुछ सालों की तुलना में इस वर्ष घरेलू प्रसव के आकड़े में गिरावट आई है। प्रयास है कि इसे शून्य किया जाए। इसके लिए लगातार आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं को निर्देशित किया जा रहा है। 1 अप्रैल से लेकर 30 नवंबर तक जिले में 28808 डिलीवरी हुई हैं। इसमें 27 हजार 875 प्रसव संस्थागत हुए हैं।
डॉ. एमएल गुप्ता, सीएमएचओ रीवा