कभी नमकीन और चिप्स की फैक्ट्रियों में भी पहुंचिए हुजूर

सतना। घर से निकलते ही सबसे पहली जो शॉप मिलेगी उस पर चिप्स व नमकीन के पैकेट जरूर डिस्प्ले किए जा रहे होंगे। पैकेट में बंद चिप्स व नमकीन जिले  में सबसे ज्यादा बिकने वाला फूड प्रोडक्ट है, बावजूद इसकी गुणवत्ता की सबसे अधिक अनदेखी की जाती है। खाद्य पदार्थों की शुद्धता सुनिश्चित करने का दायित्व संभालने वाला खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग होली व दीपावली जैसे पर्वों पर कुछ मिठाई की दुकानों की जांच कर भले ही अपने दायित्व का निर्वहन कर लेता हो लेकिन जिले में सबसे अधिक बिकने वाले खाद्य पदार्थ को लेकर विभाग गैर जिम्मेदार बना हुआ है। न तो पैक्ड नकमकीन-चिप्स की जांच कर क्वालिटी जांची जाती और न ही कारखानों में पहुंचकर इन्हें जांचा जाता है, जबकि शहर में ही तकरीबन एक दर्जन  कारखानों में नमकीन व चिप्स बनाई जाती है।

मुख्य बिंदु 

  • इंडस्ट्रियल एरिया, सिंधी कैंप, डालीबाबा चौक व टिकुरिया टोला में हैं  तकरीबन एक दर्जन कारखाने। 
  • जिले में रोजाना 20 से 25 लाख का तो महीनें में 5 से 7 करोड़ का है धंधा, सतना के बाद सर्वाधिक खपत मैहर में। 
  • लोकल के अलावा इंदौर, भोपाल व नागपुर से आती है नमकीन और चिप्स। 
  • लोकल ब्रांड में सर्वाधिक धांधली, कारखाना नहीं जांचती फूड सेफ्टी टीम । 
  • स्रैक्स बनाने में उपयोग होने वाले कच्चे मटेरियल भी जांच टीम की नजर में नहीं।  

स्पाट इंस्पेक्शन क्यों नहीं 
आम जनता की सेहत से खिलवाड़ कर लोग किस तरह पैसा कमा रहे हैं, इसका नमूना देखना हो तो शहर की उन नमकीन व चिप्स कारखानों में पहुंचिए जहां बेहद अनहाईजीनिक कंडीशन में इन्हें तैयार किया जाता है। इक्का-दुक्का कारखानों को छोड़ दिया जाय तो तकरीबन सभी कारखाने गंदगी से पटे हैं। न तो सफाई व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है और न ही कच्चे माल की गुणवत्ता का। सब्जी मंडी के एक थोक सब्जी विक्रेता ने बताया कि उसके यहां से चिप्स बनाने के लिए आलू खरीदी जाती है लेकिन सबसे घटिया स्तर की।

ऐसी अधसड़ी आलू जिसकी कीमत बाजार में सबसे कम हो उसे चिप्स निर्माता खरीदी के लिए सबसे अधिक पसंद करता है। ऐसेआलू काकलर निखारने इन्हें  हाइड्रो पावडर (सोडियम हाइड्रोआॅक्साइड) के घोल से धोया जाता है।  यह केमिकल कैंसर पैदा करने वाला माना जाता है। यही हाल चिप्स व नमकीन तलने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले तेल का भी है। जानकार बताते हैं कि नियमन  एक बार प्रयुक्त हो चुके तेल का इस्तेमाल नहीं करना है, लेकिन अधिकांश नमकीन व चिप्स निर्माता एक तो वैसे भी सबसे घटिया व सस्ते तेल का इस्तेमाल करते हैं ।

कोढ़ में खाज यह कि  घटिया जले तेल का बार-बार प्रयोग इस्तेमाल कर जन स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी करते हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम शायद ही कभी शहर के नमकीन व चिप्स कारखानों में पहुंचकर जांच पड़ताल करती है। सूत्रों की मानें तो सभी कारखानों के प्रबंधनों ने फूड विभाग के अधिकारियों को सेट कर रखा है जिसके चलते वे दफ्तर में ही बैठकर उनकी निरीक्षण रिपोर्ट तैयार कर कोरम पूरा कर लेते हैं, नतीतजन जनस्वास्थ्य से नमकीन-चिप्स निर्माताओं का खिलवाड़ डंके की चोट पर जारी है। 

ब्रांडेड कंपनियों के रिजेक्टेड उत्पाद से तैयार कर रहे नमकीन 
इसी प्रकार जिले के विभिन्न कारखानों में बनने वाली नमकीन भी अमानक रंगों से पटी होती है। इनमें उपयोग किया जाने वाला चना, मूंग व विभिन्न दालों की कवलिटी  खराब होती है । इसके अलावा नमकीन में जिन रंगों का उपयोग होता है उनमें कई ऐसे हैं जो घातक कैंसर तक का कारण बनते हैं। नमकीन के ही कुछ बड़े कारोबारियों का तो यहां तक दावा है कि पारले, हल्दीराम, बीकानेरी, बालाजी जैसी नामीगिरामी कंपनियों के रिजेक्ट उत्पादों से स्थानीय स्तर पर  नमकीन  तैयार की जा रही है।

दरअसल ब्रांडेड कंपनियां अपने खराब माल को कम कीमतों पर नीलाम करती हैं जिसे मुनाफाखोर पशु आहार के तौर पर इस्तेमाल करने के बहाने खरीद लेते हैं। बाद में इसी रिजेक्टेड नमकीन में घटिया किशमिश, बादाम और काजू मिलाकर नमकीन बना दी जाती है। ब्रांडेड कंपनियों से काफी कम कीमतों पर जब यह नमकीन लोकल बाजार में उतरती है तो हाथोंहाथ बिक जाती है। बाजार के सूत्रों के मुताबिक शहर में तैयार की गई नमकीन का थोक रेट करीब 190 रुपये किलो है जिसे रिटेलर सवा दो सौ रुपये तक के रेट में बेचते हैं।

इस नमकीन में सड़े और खराब ऐसे ड्राईफूट्स इस्तेमाल किए जाते हैं जिनकी मार्केट में आधी कीमत भी नहीं मिलती। मामूली रेट में नमकीन में मेवा मिक्स देखकर उसे खरीदने वाले लोग इसे फायदे का सौदा समझते हैं। उन्हें यह पता ही नहीं होता है कि वह न सिर्फ जाने अनजाने पशु आहार खा रहे हैं बल्कि मेहमाननवाजी के लिए भी उसे इस्तेमाल कर रहे हैं। यही स्थिति गट यानी मिक्स नमकीन में होती है। इसमें इस्तेमाल किए गए उत्पाद भी रिजेक्टेड होते हैं। भुजिया और मूंग की दाल जिसकी सबसे ज्यादा बिक्री होती है, उसमें भी पशु आहार यानी रिजेक्टेड माल की मिलावट होती है।

फिलहाल ऐसी कोई शिकायत तो नहीं आई है लेकिन खाद्य पदार्थ तैयार करने वाले प्रतिष्ठानों की नियमित चेकिंग आवश्यक है। जल्द ही एक टीम बनाकर नमकीन-चिपस बनाने वाले कारखानों की जांच कराई जाएगी। मिलावटी या अमानक खाद्य सामग्री  की बिक्री कदापि बर्दाश्त नहीं की जाएगी। 
अजय कटेसरिया, कलेक्टर 

नमकीन और दूसरी चीजों में मिलावट करने वाले लोग पूरे बाजार को प्रदूषित कर रहे हैं। व्यापार का नैतिक दायित्व है कि आम लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ न किया जाए। प्रतिस्पर्धा बेहतर उत्पाद तैयार करने में होना चाहिए। उपभोक्ताओं को भी विश्वसनीय उत्पाद खरीदने चाहिए। 
द्वारिका गुप्ता, अध्यक्ष विंध्य चेंबर आफ कामर्स 

कारोबार में प्रतिस्पर्धा ठीक है लेकिन खाने-पीने की घटिया चीजें उपभोक्ताओं तक पहुंचाना अनुचित है। मिलावटीखोरी कुछ लोग करते हैं लेकिन बदनाम सभी व्यापारी होते हैं। घटतौली और मिलावट कतई नहीं होनी चाहिए। इसका असर आम लोगों के साथ बड़े उद्योगों पर भी पड़ता है। प्रशासन को नियमित जांच करनी चाहिए। 
अशोक दौलतानी, प्रदेश सचिव  ‘कैट’