दिव्य विचार: सहनशीलता बढ़ाएं, मजबूत बनें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते है कि धर्मनिष्ठा, वास्तविक धर्म निष्ठा हो और यह तभी होगी जब आत्मनिष्ठा से आप लबरेज होंगे। आत्मनिष्ठा जगाइए, धर्मनिष्ठा होगी। मैं धर्म करूँगा, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए, जीवन को निर्मल बनाने के लिए, चरित्र को उज्ज्वल बनाने के लिए, अन्तःकरण को विशुद्ध बनाने के लिए। मुझे धर्म करना है क्योंकि यही एक माध्यम है, अपने आपको पवित्र बनाने का, मैं अपनी भूमिका अनुरूप धर्म करूँगा। मेरे पास इतनी योग्यता नहीं कि मैं 24 घण्टे ध्यान कर सकूँ। मुझे प्रवृत्तियों में जीना है तो पाप से अपने आपको बचाना चाहता हूँ। प्रभु! आपकी आराधना करता हूँ, अपने हृदय को निर्मल बनाने के लिए, अपनी विशुद्धि को वृद्धिगत करने के लिए, अपने अहम-भाव को विगलित करने के लिए, अपने अहोभाव की अभिवृद्धि करने के लिए आपकी पूजा के लिए आया हूँ। आपके पास प्रार्थना करने के लिए आया हूँ। मैं जो भी व्रत उपवास करता हूँ अपनी चेतना की विशुद्धि के लिए करता हूँ, अपनी सहनशीलता को बढ़ाने के लिए करता हूँ, अपने आपको अन्दर से मजबूत बनाने के लिए करता हूँ, यह मेरा उद्देश्य है। में दान भी करता हूँ तो यह मानकर करता हूँ कि मेरी आसक्ति मिटे, मेरा अहंकार घटे और मेरा हृदय विशुद्ध हो। मैं इसलिए यह सब कर्म कर रहा हूँ क्योंकि यह मेरा धर्म है। यह है धर्मनिष्ठा, देखो अपनी धर्मनिष्ठा को कैसी धर्मनिष्ठा है? सतही धर्मनिष्ठा लोगों में बहुत देखने को मिलती है लेकिन इसके बाद भी उनमें बदलाव जैसा दिखना चाहिए, वैसा नहीं दिखता। बहुत से धर्मी लोग हैं इस समाज में, जो मन्दिर में जितनी देर रहते हैं उतनी देर उनसे पवित्र कोई इंसान नहीं, मन्दिर के बाहर जो उनका रूप होता है धरती पर वैसा कोई दूसरा रूप नहीं। दोनों चीजें होती है, बाहर आते ही रूप बदल जाता है।