SGMH: बेड हेड टिकट के लिए महीनों चक्कर काटते हैं पुलिसकर्मी

रीवा | पेडिंग मामलों को लेकर आये दिन अधिकारियों की डांट सुनने वाले पुलिसकर्मियों के संजय गांधी अस्पताल से बेड टिकट प्राप्त करने में पसीने छूट जाते हैं। हालत यह है कि एक बेड हेड टिकट के लिए उनकों एक से तीन माह तक चक्कर काटना पड़ जाता है। इस समस्या को पुलिस अधिकारियों ने भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है। संजय गांधी अस्पताल में प्रतिदिन काफी संख्या में मारपीट, एक्सीडेंट सहित अन्य एमएलसी मामलों के मरीज भर्ती होते हैं।

अस्पताल से छुट्टी होने के बाद उन मरीजों की बेड हेड टिकट प्राप्त करने में पुलिसकर्मियों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। वार्डों में चिकित्सक सहित स्टाफ द्वारा उनको बेड हेड टिकट प्रदान करने में हीलाहवाली की जाती है। अस्पताल के अधिकारियों ने बेड हेड टिकट के लिए सोमवार, मंगलवार व बुधवार के दिन निर्धारित किये हैं लेकिन इन तीन दिनों में भी पुलिसकर्मियों को बेड हेड टिकट देने वाला कोई नहीं होता है। पुलिसकर्मियों से चिकित्सक बाद में आने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते है। 

व्यवस्था बदलने को तैयार नहीं प्रबंधन
सबसे ज्यादा अव्यवस्था सर्जरी विभाग, नाक कान व गला विभाग, नेत्र विभाग में देखने को मिलती है। वहीं पेडिंग मामलों को लेकर आये दिन विवेचकों व थाना प्रभारियों को फटकार लगाने वाले अधिकारी भी समस्या को दूर करने के दिशा में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं जबकि कई बैठकों में यह मुद्दा उठ चुका है। वहीं बेड हेड टिकट न मिलने से थानों में दर्ज होने वाले आपराधिक मामलों का निराकरण समय पर नहीं हो पाता है। 

डिस्चार्ज के दूसरे दिन होना चाहिए जमा
संजय गांधी अस्पताल के डॉक्टर आखिर क्यों महीनों बेड हेड टिकट अपने पास रखते है। नियमानुसार मरीज के डिस्चार्ज होते ही उसे दूसरे दिन सीएमओ कार्यालय में जमा हो जाना चाहिए लेकिन उसे अपने पास रखते है। इसके पीछे उनकी मंशा क्या रहती है यह तो डॉक्टर ही बेहतर बता सकते है।

अधिकांश मामले इसी कारण होते हैं लंबित
मामले अनावश्यक रूप से महीनों लंबित रहते है। वहीं मामलों के विवेचक फरियादियों का शिकार बनते हैं। फरियादी विवेचकों के खिलाफ कार्रवाई न करने की शिकायत लेकर अधिकारियों के चक्कर काटते हैं जबकि अधिकांश मामले बेड हेड टिकट की वजह से लंबित रहते है। किसी भी आपराधिक प्रकरण में बेड हेड टिकट का महत्वपूर्ण योगदान रहता है और बिना इसके चालान पेश नहीं हो सकता है। बेड हेड टिकट में ही चिकित्सक घायल की चोटों के संबंध में फाइनल राय देते हैं जिसके आधार पर केस में धाराएं बढ़ाई व घटाई जाती है। जब तक बेड हेड टिकट नहीं मिलेगी तब तक उक्त प्रकरण का निराकरण नहीं हो पाता है।

वार्डों में पीजी डॉक्टरों की ड्यूटी होती है। उन पर मरीजों की देखभाल का पूरा भार होता है। ऐसे में कभी-कभी बेड हेड टिकट के लिए पुलिस कर्मियों को परेशान होना पड़ता है लेकिन अधिकतर कोशिश यही रहती है कि बेड हेड टिकट समय पर मिल जाए।
डॉ.अतुल सिंह, उप अधीक्षक एसजीएमएच