संक्रमण काल में गरीब बच्चों को भूल गई सरकार
सतना | कोरोनाकाल के चलते निम्न वर्ग (बीपीएल कार्डधारी) के लोगों की उम्मीद पर पानी फिर गया है। इस साल शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत किसी भी गरीब परिवार के बच्चे का एडमिशन स्कूल में नहीं हुआ है। जिले में छात्रों की सीट संख्या 1.95 हजार हैं। ऐसे में तकरीबन 7 से 8 हजार एडमीशन जिले में आरटीई के तहत होने थे। मगर, कोविड की वजह से सरकार की ओर से किसी तरह के आदेश जारी नहीं आए। इसके चलते निम्न वर्ग के अभिभावकों की जेब व उनके बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ा है।
अभिभावक प्रमोद चौधरी, सरोज कुशवाहा, मनोज दाहिया, सुमित्र मवासी, करूणा मवासी आदि ने बताया कि आरटीई नियम के स्पष्ट निर्देश न आने से बच्चों को निजी स्कूल में एडमिशन दिलाना मुश्किल हो रहा है। एक ओर जहां प्रवेश नहीं हुए वहीं दूसरी ओर बीपीएल कार्ड धारकों के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराने के सरकारी निर्देश अब निजी स्कूलों के लिए भी मुसीबत का सबब बन रहे हैं। सरकार आरटीई की राशि देने में कोताही बरत रही है। जिससे कोविड संक्रमण काल में निजी विद्यालयों की व्यवस्था चरमरा गई है। कई विद्यालय बंद होने की कगार पर आ गए हैं। निजी स्कूल प्रबंधनों का कहना है कि, सरकार से निजी स्कूलों को जो मदद मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली जिससे स्कूल संचालन बेहद कठिन है।
23 फीसदी ने छोड़ी पढ़ाई
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत पढ़ाई करने वाले बच्चे 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे हैं। इन बच्चों के सामने बड़ा संकट है कि वे 9वीं से निजी स्कूलों में कैसे पढ़ाई करें। इसी वजह से पिछले 10 सालों में आरटीई के तहत सतना में 23 फीसदी तो समूचे प्रदेश में नि:शुुल्क शिक्षा ले रहे 24.2 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। यह आंकड़े मानव संसाधन विकास मंत्रालय के (एमएचआरडी) हैं। मप्र इस मामले में पांचवे नंबर पर है। गौरतलब है कि नर्सरी से आठवीं तक प्रत्येक बच्चे की फीस 4600 रुपये है, जो सरकार देती है। वहीं, 9वीं के बाद इन बच्चों को शासन की ओर से कोई मदद नहीं मिलती है। शिक्षाविदों का मानना है कि बड़े निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। वहीं, 8वीं के बाद 9वीं में वे सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं।
4 सौ से अधिक विद्यालय
जिले में 400 से अधिक ऐसे विद्यालय हैं जिन्हें आरटीई की राशि अब तक नहीं मिली है। इनमें से कई विद्यालय ऐसे हैं जिन्हें शैक्षणिक सत्र 2017-18 से आरटीई की राशि नहीं दी गई। सूत्रों की मानें तो स्कूल प्रबंधनों ने सरकार के निर्देश पर 25 फीसदी सीटों पर बीपीएल कार्ड धारक छात्रों को प्रवेश दे दिया और साल भर उनका अध्यापन कार्य करा परीक्षाएं भी आयोजित करार्इं, लेकिन सरकार प्रवेश के बाद आरटीई की राशि स्कूल प्रबंधनों के खाते में डालना भूल गई, नतीजतन अब निजी स्कूल प्रबंधन खासा आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
कोविड संक्रमण काल में स्कूलें बंद रहने व सुचारू रूप से सत्र शुरू न होने के कारण प्राइवेट स्कूल प्रबंधन वैसे ही मुसीबत में हैं, ऐसे में सरकार द्वारा आरटीई की राशि में रोड़े अटकाना स्कूल प्रबंधनों की मुसीबत के लिए कोढ़ में खाज साबित हो रही है। स्कूल प्रबंधनों का कहना है कि यदि सरकार आरटीई की राशि दे दे तो इस मुश्किल दौर में स्कूल संचालन के लिए राहत मिल जाएगी।
कई विद्यालयों को 5 साल पहले की राशि नहीं
एसआर कान्वेंट स्कूल मरकड़ा , एसआर कान्वेंट हाईस्कूल रामनगर, सरस्वती विद्या मंदिर लालपुर , एसआर कानव्ेंट पब्लिक स्कूल रामनगर प पूर्व माध्यमिक विद्यालय अमरपाटन जैसे कई विद्यालयों की आरटीई की राशि सत्र 2014-15 की नहीं मिली है। इन स्कूल प्रबंधनों का कहना है कि शुरूआती चरण में प्रवेश के लिए जिन दस्तावेजों की अनिवार्यता नहीं थी उन दस्तावेजों को विभाग द्वारा तलब किया जा रहा है। अब जब छात्र पढ़ाई पूरी कर जा चुके हैं तब उनसे जुड़े दस्तावेज नए सिरे से कैसे एकत्र किए जायं। कई बार स्कूल प्रबंधनों ने शिकायतें की, ज्ञापन दिए, प्रदर्शन किए लेकिन अब तक उनकी समस्या का समाधान नहीं निकल सका है।
सरकार का लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा का उजियारा पहुंचना है और सरकार इसके लिए हर प्रयास कर रही है। आरटीई की राशि जारी होने में यदि दिक्कत आ रही है तो उच्चातर पर चर्चा का समस्या का समाधान कराया जाएगा।
रामखेलावन पटेल, राज्यमंत्री मप्र शासन
देखिए जल्द ही आरटीई की राशि जारी होने की उम्मीद है। प्रपोजल तेयार हो चुके हैं जिसकी स्वीकृति भी उच्चाधिकारियों से मिल गई है। प्रपोजल की राशि कुछ घट रही है जिसकी डिमांड शासन को भेजी गई है। आशा है कि जल्द ही राशिजारी हो जाएगी।
सुरेंद्र सिंह, डीपीसी
आरटीई के तहत दसवीं व बारहवीं तक निशुल्क शिक्षा देने संबंधी प्रस्ताव शासन की तरफ से भेजा गया था, लेकिन अब तक कुछ भी निर्णय नहीं हुआ।
केके द्विवेदी, उपसचिव, स्कूल शिक्षा विभाग भोपाल