करोड़ों झोंकने के बाद टूरिस्ट प्लेस संभालने में लडख़ड़ा रहा वन विभाग
रीवा | गत वर्षों में जिले के कई पर्यटन स्थलों को विकसित किया गया जिसमें ईको पर्यटन बोर्ड एवं शासन से करोड़ों रुपए वन विभाग को सौंपे गए ताकि पर्यटन स्थलों के जरिए क्षेत्रीय बेरोजगारों को रोजगार मिल सके। परंतु पर्यटन स्थलों का उन्नयन तो हो गया मगर क्षेत्रीय युवाओं को नौकरी से वंचित रखा गया। इतना ही नहीं सिरमौर पियावन, टोंस वाटर फाल, आल्हा घाट जैसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों को संभालने में भी वन विभाग लड़खड़ाने लगा है। ज्ञात हो कि टोंस वाटर फाल पिछले एक महीने से बंद पड़ा है। जबकि यह ऐसा टूरिस्ट प्लेस है जो बारहों महीने चलता है।
गौरतलब है कि पर्यटन क्षेत्रों में कैफे, रेस्टोरेंट, एडवेंचर स्पोर्ट्स, कैंपिंग, सुरक्षा गार्ड, सफाई कर्मी, टिकट काउंटर, गाइड जैसे कई रोजगार को बढ़ावा दिया जा सकता है। मगर वन विभाग के आला अधिकारी जैसे-तैसे निर्माण कार्य करने के बाद खुद को फुर्सत मान लिए। ऐसे में यह जरूरी कार्रवाईयां पिछड़ती गर्इं।
जब मध्यप्रदेश ईको पर्यटन विकास बोर्ड सिरमौर के पियावन घिनौची धाम, आल्हा घाट और टोंस वाटर फॉल के लिए एक करोड़ की राशि सेंशन कर रहा था तब उस गाइड लाइन में यह भी उल्लेखित किया गया था कि काम पूरा होने के बाद क्षेत्रीय युवाओं को पर्यटन क्षेत्रों में रोजगार दिया जाएगा और उन्हें बकायदा ट्रेनिंग दी जाएगी। मगर ऐसा अब तक कुछ भी नहीं हुआ। जाहिर है कि शासन का पर्यटन केन्द्रों को विकसित करने का मूल उद्देश्य यही है कि पर्यटन गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जा सके। मगर मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कोई कवायद नहीं की जा रही है।
युवाओं को प्रशिक्षण नहीं दिया
पर्यटन क्षेत्रों में कई तरह के रोजगारों का सृजन किया जा सकता है। मध्यप्रदेश ईको पर्यटन विकास बोर्ड की गाइड लाइन के अनुसार जिन लोगों को टूरिस्ट स्पॉट में रोजगार दिया जाना है उन्हें उच्च स्तरीय प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मगर अब तक न तो क्षेत्रीय लोगों को चुना गया न ही उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और न ही किसी की नौकरी लगाई गई। शासन का कहना यह है कि क्षेत्रीय युवाओं की भर्ती करे मगर घिनौचीधाम में टिकट घर में बैठे कर्मचारी 50 साल से अधिक के उम्र के हैं और वह वन विभाग के कर्मचारी हैं।
टोंस वाटर फाल एक महीने से बंद
सिरमौर के लेब्रा घाटी में मौजूद टोंस वाटर फाल पर्यटकों के लिए पिछले एक महीने से बंद है। समझने वाली बात यह है कि जब यहां कुछ भी नहीं था। सीढ़ियां नहीं बनी थी, रेलिंग नहीं लगी थी तब भी सैलानी यहां जाते थे और जब हर चीज व्यवस्थित हो गई हैं तो मेंटीनेंस के नाम पर पर्यटन स्थल को बंद करके रखा गया है। जिससे विभाग को राजस्व की क्षति हो रही है।
ज्ञात हो कि सितम्बर महीने में भी सीढ़ी टूट जाने के कारण डेढ़ महीने तक बरसात के दिनों में टोंस वाटर फाल को बंद रखा गया था। उसके बाद अक्टूबर महीने में फिर से फाल को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया। यह बात समझ से परे है कि आखिर यह कैसी मेंटीनेंस है जिसको करने में एक महीने से अधिक का समय लग जाता है। 35 लाख रुपए खर्च करने के बाद टोंस वाटर फाल बंद पड़ा हुआ है। पर्यटकों को इतना दूर जाने के बाद मायूस होकर लौटना पड़ता है।
पर्यटन क्षेत्रों में स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार न देने का मामला स्टार समाचार काफी पहले से उठाता आ रहा है। गत वर्ष इसी मुद्दे पर प्रकाशित एक खबर के आधार पर शासन ने पर्यटन विभाग से जानकारी मांगी थी मगर पर्यटन विभाग ने स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की कार्रवाई पर ध्यान ही नहीं दिया। हालांकि पर्यटन विभाग की टोंस, आल्हाघाट और घिनौची धाम से ज्यादा दिलचस्पी नहीं है बल्कि यहां रोजगार देने की जिम्मेदारी ईको पर्यटन और वन विभाग की है। अधिकारी खुद मान रहे हैं कि इन तीनों ईको पर्यटन क्षेत्रों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की कार्रवाई काफी पिछड़ गई है।
आल्हा घाट में साइकिल ट्रैक बनाया गया है मगर यहां साइकिलें नहीं मंगाई गर्इं। सूत्रों की मानें तो विभाग को यहां अच्छी क्वालिटी की टेरेरन साइकिल मंगाने के लिए 55 हजार रुपए आवंटित हुए थे मगर आल्हा घाट में एक भी साइकिलें नहीं दिखतीं। यही हाल सोलर प्लांट स्थापित करने में भी रहा। डेढ़ लाख रुपए में सोलर प्लेटें लगाई जानी थीं ताकि यहां जलने वाली लाइटें सोलर बिजली से जलें। मगर यह भी संभव नहीं हो पाया।