दिव्य विचार: श्रद्धा होगी तो सारे द्वंद नष्ट होंगे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: श्रद्धा होगी तो सारे द्वंद नष्ट होंगे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज चार बातें आपसे कहूँगा- श्रद्धा, अश्रद्धा, अन्धश्रद्धा और अटल श्रद्धा। श्रद्धा : बस जिस आदर्श को हमने स्वीकार किया, उसको कल्याणकारी मानकर उसके स्वरूप को ही अपना मानना, यह श्रद्धा है। जब तुम्हारे हृदय में श्रद्धा प्रकट हो जाती है तो मन का सारा द्वन्द्व नष्ट हो जाता है, भय भाग जाता है, उद्वेग शान्त हो जाते हैं और अशान्ति मिट जाती है। जहाँ श्रद्धा हो वहाँ यह सब दूर हो जाता है और जहाँ श्रद्धा नहीं वहाँ मन शंका से भरा रहता है। जहाँ शंका होती है, वहाँ डर होता है, उद्वेग होता है, अशान्ति होती है। होती है कि नहीं होती है ? अभी आप लोग बड़ी निश्चिन्तता से बैठे हैं। क्यों बैठे हैं? सेफ स्थान है। यदि अभी मैं कह दूँ कि सावधान हो जाओ, पीछे साँप है तो? कुछ नहीं कहोगे? कहोगे कि महाराज ! मजाक कर रहे हो, यहाँ साँप कहाँ से आएगा? साँप के आने की रंचमात्र सम्भावना नहीं है इसलिए आप निश्चिन्त बैठे हो। पक्की श्रद्धा है साँप यहाँ आ ही नहीं सकता है। लेकिन कोई कहे कि छिपकली आ गई है तो बोलो ! बैठोगे या हिलोगे डुलोगे या भागोगे? यह आकुलता किसने दी? शंका ने दी। आपको लगे कि छिपकली भी यहाँ आ ही नहीं सकती, पूरे में मेटिंग है। कहाँ से आएगी? आने की कोई गुंजाइश नहीं है। किसी की कारस्तानी हो सकती है, कोई मजाक कर सकता है, आप हिलेंगे-डुलेंगे नहीं। एक छोटा सा उदाहरण है। जहाँ हमारी श्रद्धा प्रगाढ़ होती है वहाँ निश्चिन्तता होती है और जहाँ शंका होती है वहाँ सदैव द्वन्द्व और भय बना रहता है। श्रद्धा को हृदय में प्रकट करने वाला निर्भय होता है।