दिव्य विचार: बहिष्कार नहीं, संस्कार जगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: बहिष्कार नहीं, संस्कार जगाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि धर्म कहता है बहिष्कार नहीं, संस्कार की बात करो। यदि जिस व्यक्ति ने मांसभक्षण कर लिया, उस व्यक्ति को प्यार से सम्हाला जाता, समझाया जाता, उसका बहिष्कार करने की जगह उसके संस्कारों को जगाया जाता तो हम एक बहुत बड़े नुकसान से बच गए होते। पर हमारे अतीत में इस कट्टरता ने हमारी समाज को छिन्न-भिन्न कर दिया, खण्ड-खण्ड कर दिया। वस्तुतः ऐसे लोग सच्चे धर्मात्मा नहीं हो सकते। हमारा धर्म कभी भी बहिष्कार की भाषा नहीं बोलता । बहिष्कार ही अधर्म है। संस्कार का नाम धर्म है। आज सामाजिक समीकरण बहुत बिगड़ गए हैं। हमारे समाज में इस बहिष्कार के कारण बहुत सारे लोग हमसे छिन्न-भिन्न हो गए। गाँधीजी मोढ़ बनिया थे और मोढ़ बनिया में जैनधर्म का पालन होता था। गाँधीजी ने खुद लिखा है कि जब वह भारत से बाहर जा रहे थे तो उनकी माँ ने उन्हें जो संकल्प दिलाए थे, वे बेचरदास जी जो जैन साधु थे, उनसे दिलवाए थे। उनके घर जैन मुनियों का आना-जाना होता था। कट्टरता की वजह से धीरे-धीरे इन्हीं कारणों से हमारा सम्पर्क टूटा और सब चले गए। हमें सम्हालना चाहिए। आज एक बड़ी समस्या हमारे समाज के बीच आती है। युवक-युवतियों का एक-दूसरे के साथ चक्कर बनता है और उस चक्कर में फँसने के बाद उनका एक-दूसरे से विवाह हो जाता है । अब उसके बाद क्या किया जाए? उनको अपनाएँ या उनका बहिष्कार करें? यह एक ज्वलन्त प्रश्न है जिस पर समय रहते विचार होना चाहिए। अपनाने की बात मैं नहीं कर सकता, क्योंकि कहूँगा तो राजमार्ग बन जाएगा, पर बहिष्कार की बात भी मुझे हजम नहीं होती, क्योंकि उससे बहुत नुकसान दिखता है। बहिष्कार का क्या कुपरिणाम होता है?