दिव्य विचार: जहां डरना चाहिए वहीं डरो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बन्धुओं ! मैं आपको डर दिखाऊंगा और डर मिटाऊंगा। आपके डरने और डराने की प्रवृत्ति से आपको बाहर भी निकालूंगा। कुछ जगह डरना अच्छा है और कुछ जगह डरना बुरा हैं। लोक में आप जिन बातों से डरते हो, वहाँ डरने जैसा कुछ भी नहीं है और जिनके प्रति आप बिल्कुल संकोच त्याग देते हो, उनका डर बहुत आवश्यक है। एक डर है, जो हमारे जीवन को डगमगा देता है, डिगा देता है और एक डर वह है, जो हमारे जीवन को सही दिशा देता है। जीवन को डगमगाने वाले डर से बाहर निकलिए और जीवन को सही दिशा देने वाले डर को आत्मसात कीजिए। दोनों बातें हमें साथ-साथ लेकर चलना है। सबसे पहली बात उस डर की है, जिससे आप डगमगाते हो, जो आपको डिगा देता है, आपकी नैया डांवाडोल कर देता है। उस डर को आप टटोलिए, अपने मन से पूछिए, आपके मन में डर है या नहीं, आप डरते हो कि नहीं? डरते हो, किस-किससे डरते हो, सबका अपना- अपना डर है। किसी को असफलता का डर है, किसी को व्यापार में नुकसान का डर है, किसी को बीमारी का डर है, किसी को अपनी रेपुटेशन का डर है, किसी को अपने अपमान का डर है, किसी को बुढ़ापे का डर है, किसी को बीबी का डर है, किसी को बच्चों का डर है, सबको कोई न कोई डर है। वस्तुतः जिनसे आप डरते हैं, उनमें डरने जैसा कुछ नहीं। देखिए, हमारे पास जो डर होता है, वह दो प्रकार का होता है- एक होता है वास्तविक डर और दूसरा होता है काल्पनिक डर। कोई खौफनाक परिस्थिति निर्मित हुई, उस घड़ी में हमारे मन में जो डर होता है वह वास्तविक डर है लेकिन जब भी ऐसी सिचुएशन होती है उसके साथ उसका सोल्युशन खड़ा होता है। आपको कोई बीमारी हुई, आपके मन में डर आया। कैंसर भी है तो उसका इलाज भी है। बीमारी है, उसका इलाज है।