दिव्य विचार: पाप के पैसे का उपार्जन न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: पाप के पैसे का उपार्जन न करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तीसरी है पापलक्ष्मी। पाप और अनाचार करके जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह पापलक्ष्मी कहलाती है। गलत कार्य करके, अनैतिकतापूर्ण आचरण करके, हिंसा और हत्या का रास्ता अपनाकर, शोषण करके या अन्य तरह के पापमय रास्ते से जो पैसा कमाते हैं वह पापलक्ष्मी कहलाती है। वह लक्ष्मी इस जीवन में भी दुखी बनाती है और भावी जीवन को भी दुर्गति का पात्र बना देती है। पापलक्ष्मी कभी अनुकरणीय नहीं है। सट्टा, जुआ के माध्यम से, तस्करी के माध्यम से, अन्य प्रकार के अनाचारों से, हिंसा के रास्ते को अपनाकर, और जीव हत्या के माध्यम से कमाया गया पैसा; ये सब पापलक्ष्मी है। जीवन में निर्धनता को स्वीकार कर लेना लेकिन पाप से पैसे का उपार्जन करने की कोशिश कभी मत करना। यहाँ पाप से अभिप्राय है अनैतिकता। नैतिकता से धन सम्पन्नता हो सकती है; ऐसा जरूरी नहीं कि आपको अनैतिकता का ही रास्ता अपनाना पड़े। अनैतिकता के रास्तों को अपनाने वालों की सम्पत्ति पापलक्ष्मी होती है। पापलक्ष्मी कमाने वालों को जब भण्डाफोड़ होता है तो वे कहीं के नहीं रहते। आदमी के साथ बड़ी मुश्किल है। आदमी को पैसा बहुत अच्छा लगता है। एक बार लक्ष्मी और दरिद्रता के बीच एक दूसरे से श्रेष्ठता साबित करने की होड़ हो गई। लक्ष्मी कहे कि मैं पावरफुल (ताकतवर) और दरिद्रता कहे मैं पावरफुल। लक्ष्मी ने कहा- मैं जहाँ रहती हूँ सब पूछा- बड़ा करते हैं और दरिद्रता कहे कि सारी दुनिया पर मेरा लोग उसकी पूजा साम्राज्य है। दोनों में बहस छिड़ गई। तय हुआ कि चलो नगर सेठ से पूछा जाए, वह तय करेगा कि दोनों में कौन सही है, कौन ज्यादा बलशाली है। लक्ष्मी और दरिद्रता दोनों सेठ के पास पहुँचीं और - ये बताओ हम दोनों में किसका बल अधिक है? सेठ ने सोचा विचित्र मामला है, एक का पक्ष लिया तो दूसरा नाराज। किसी से भी पंगा लेना ठीक नहीं।