दिव्य विचार: अपनी सीमाओं को न लांघे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपनी सीमाओं को न लांघे- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि महाविनाश के गर्त में सब जा रहे हैं। उस महाविनाश से बचना और बचाना है तो सावधानी की जरूरत है। मैंने पहले भी कहा था आज फिर कह रहा हूँ- आज उच्च शिक्षा में भेजना युग की आवश्यकता है। युवक- युवतियों की उच्च-शिक्षा सम्पन्न होनी चाहिए पर वे अपनी लिमिटेशन (मर्यादा) को कभी भूले नहीं, अपनी बॉऊन्ड्रीज़ (सीमाओं) का ख्याल रखें और उसके प्रति प्रतिबद्ध रहें तो कभी भटकाव नहीं आ सकता। इसके लिए शुरु से गुरुओं के साथ जुड़ाव जरूरी है। यदि बच्चों का गुरुओं से जुड़ाव होगा तो वे कभी भटकेंगे नहीं और यदि कदाचित भटक जाते हैं तो कभी आकर प्रायश्चित लेने का भी भाव करते हैं। अभी तीन दिन पहले दो बच्चे मेरे पास आकर बोले- महाराज श्री ! आप से कुछ समय चाहिए। मैं व्यस्त था, मैंने कहा- अभी नहीं। नहीं महाराज ! अभी चाहिए और एकान्त में चाहिए। दोनों बच्चों ने अपनी बात कही- महाराज ! हम भटक गए, हमने शराब का भी पान किया और हमने सम्बन्ध भी बनाए। महाराज ! हमारा मार्ग प्रशस्त कीजिए, अब हम शुद्ध जीवन जीना चाहते हैं। भटकाव में आकर हमने ऐसा कर लिया। दोनों इंजीनियरिंग के छात्र थे, माहौल के कारण भटके लेकिन गुरुओं से जुड़े रहने के कारण सम्हल गए। जो बच्चे गुरु से जुड़े रहेंगे वे कभी बर्बाद नहीं हो सकेंगे और जो बच्चे धर्म और गुरुओं से दूर रहेंगे वे कभी भी आबाद नहीं हो सकेंगे, कभी भी कहीं भी भटक सकते हैं। इसलिए आप लोगों को चाहिए कि अपने साथ अपने बच्चों को भी इस तरीके से जोड़ें। मानता हूँ कि बच्चे रोज नहीं आ सकते, उनकी दिनचर्याएँ कुछ इस तरह की होती हैं, पढ़ाई का बोझ उनके ऊपर इतना होता है। मैं तो अब सोचता हूँ कि समय-समय पर कुछ ऐसे कार्यक्रम दो-तीन दिन के होने चाहिए जो केवल बच्चों के लिए हों, युवक-युवतियों के लिए हों और उन्हें सही मार्गदर्शन दिया जाए एक वर्कशाप की तरह ताकि वे एक आध्यात्मिक चेतना को जगा सकें।