दिव्य विचार: संबंधो में मधुरता लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संसार में दो तरह के लोग हैं। एक वे हैं जो मकान बनाते है, जिनका कोई अर्थ नहीं रहता और एक वे है जो मित्र बनाते है, जिनको हर जग आनंद मिलता है। आज का सन्दर्भ बहुत विचारने का है। सम्यग्दर्शन के प्रसंग में वात्सल्य अंग की बात आज है। अपने जीवन में देखो तुमने कितने मकान बनाए? कितने मित्र बनाए? सम्पत्ति इकट्ठा करने का मतलब है मकान बनाना और हृदय में प्रेम के विस्तार का, वात्सल्य के विस्तार का मतलब है मित्र बनाना। तुम किस दिशा में आगे बढ़े? तुम्हारे द्वारा जोड़ी हुई सम्पत्ति तुम्हारे काम में आने वाली नहीं है, पर तुम्हारे सम्बन्ध सारी जिन्दगी तुम्हारे काम में आने वाले हैं। सम्पत्ति जोड़ने से भी ज्यादा मूल्यवान अपने सम्बन्धों को बनाना है। व्यावहारिक जीवन हमारे सम्बन्धों की मधुरता से चलता है और सम्बन्धों में मधुरता हमारे प्रेम और वात्सल्य पूर्ण जीवन से प्रकट होती है। सम्यग्दर्शन का अंग है 'वात्सल्य अंग।' एक धर्मी का अन्य साधर्मियों के प्रति गाय और बछड़े के समान प्रेम होना चाहिए, वात्सल्य होना चाहिए। हम लोग सुनते हैं पर प्रेम और वात्सल्य बढ़े कैसे? प्रेम, वात्सल्य की महिमा तो हमने खूब सुनी। आज मैं आपसे प्रेम और वात्सल्य की महिमा की बात नहीं करूँगा। आज चार बातें मैं आपसे कहना चाहूँगा, जिससे प्रेम और वात्सल्य की वृद्धि हो । सबसे पहली बात है को-ऑपरेशन। को-ऑपरेशन मतलब एक-दूसरे का सहयोग। मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ-किसी काम में आप उलझे हो और कोई व्यक्ति आपको को-ऑपरेट कर रहा है तो उस व्यक्ति के प्रति आपके मन में क्या भावना उत्पन्न होती है? अच्छी भावना या बुरी भावना ? किसी काम में हम उलझ गए और किसी व्यक्ति ने हमें को-ऑपरेट किया, ऐसे व्यक्ति ने जिससे को-ऑपरेशन की कोई अपेक्षा नहीं थी मन में उसके प्रति एक अलग स्थान बनता है, सारी जिन्दगी उस व्यक्ति को याद करते हैं और कहते हैं यह आदमी बड़ा को ऑपरेटिव है, बड़ा भला आदमी है, बड़ा अच्छा आदमी है।