दिव्य विचार: सम्मान देने से मिलता है, लेने से नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: सम्मान देने से मिलता है, लेने से नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वह व्यक्ति अपना रोल अदा न करे तो घर की सारी व्यवस्थाएँ गड़बड़ हो जाए, खराब हो जाएँ। इसी प्रकार घर में बड़ा हो या छोटा, हम उन सबके विषय में देखे और एक-दूसरे के गुणों की कद्र करते हुए उनको प्रोत्साहित करें। देखो तुम्हारे अंदर यह खूबी हैं। तुम्हारे अन्दर यह बहुत अच्छाई हैं। उनमें जो योग्यता हैं उसके अनुरूप काम करना शुरु कर दे। तो जीवन में कभी किसी भी प्रकार की अशांति नहीं होगी। घर-परिवार में कोई असहमति प्रकट नहीं हो सकेगी। कद्रदान बनें, एक दूसरे को इज्जत करना सीखे, कद्र करना सीखे। एक-दूसरे को इज्जत देंगे, एक-दूसरे की इज्जत करेंगे तो ही आप इज्जत पायेंगे। मैं हमेशा कहता हूँ सम्मान देने से मिलता हैं लेने से नहीं मिलता हैं। आप जितना सम्मान दोगे उतने सम्मानित बनोगे तो घर-परिवार में छोटे-बड़े सबकी कद्र होनी चाहिये। नंबर तीन पक्षपात पूर्ण व्यवहार न हो। घर के लोगों को घर के मुखिया को चाहिये कि वो अपनी तरफ से पक्षपात पूर्ण व्यवहार न करें। यह जो सोचते है कि सबके साथ समान व्यवहार हैं वो मेरी समझ में नहीं आता क्योंकि सब समान नहीं तो व्यवहार समान कैसे होगा। सबकी योग्यता अलग, सबका कार्यक्षेत्र अलग लेकिन सब के प्रति हमारा पक्षपात न हो तो यह सोचना चाहिये कि घर परिवार के सब अंग हैं और सबका एक सा महत्व हैं। सब समान होते नहीं, सबके साथ समान व्यवहार किया नहीं जा सकता लेकिन कद्र तो की ही जा सकती हैं। आप थोड़ी देर के लिये सोचिए हमारे हाथ के पंजे में पाँच उंगलियाँ हैं पाँचों उंगलियों की साईज अलग-अलग हैं। आप थोड़ी देर के लिए कल्पना करिए की उंगलियाँ बराबर होती तो हाथ की शकल कैसी होती। हाथ एक ब्रश जैसा बन जाता, हैं ना। हाथ की शोभा तब हैं जब पाँचों उंगलियाँ अलग-अलग हैं उनका शेप अलग, उनकी साईज अलग और जब हम कोई काम करते हैं तो हर उंगलियाँ का अपना-अपना कोई रोल होता हैं।