दिव्य विचार: तुम्हारा कल्याण कोई दूसरा नहीं करेगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि वह बाकी, क्या बाकी है? बोलो, बाकी है या नहीं? हाँ? कितने समझदार हैं! और हमने तय कर लिया- चुकाना नहीं है। जीवन में तुमने बहुत कुछ किया पर क्या करणीय है, इस पर विचार करो। क्या शेष रह गया, जिस पर मेरा ध्यान नहीं गया, जिस पर मैंने आज तक विचार नहीं किया। सच्ची बात तो यह है कि जो यथार्थतः विचारणीय है, उस पर आज तक तुम्हारा ध्यान नहीं गया और जिस पर तुम चौबीस घण्टे लगे हो, वह ध्यान देने योग्य भी नहीं है; वह तो अनादि से करते आ रहे हो। चार गति और चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ने यदि कुछ किया है, तो क्या किया है? आहार, भय, मैथुन, परिग्रह इन संज्ञाओं में ही तो उलझकर रहा है। भोग और विलासिता के इस चक्कर में ही तो अपने आप को उलझाकर रखा है। गोरखधंधे में ही तो मनुष्य आज तक घूमता रहा है। काश ! अपने जीवन के यथार्थ को पहचानता और सोचता कि मैंने सब कुछ कर लिया। अगर करना कुछ शेष है, तो जीवन का कल्याण अभी बाकी है। क्या बाकी है? क्या बाकी है? कल्याण । कब करोगे? महाराज ! मरने के बाद करूँगा। कब करोगे? आप लोग गीत तो गाते हो- रात अभी बाकी है, बात अभी बाकी है, मुलाकात अभी बाकी है। लेकिन जो बाकी है, उसे समझो। कल्याण की बात अभी बाकी है। एक बात बताऊँ - तुम्हारा कल्याण कोई दूसरा नहीं करने वाला, उसके लिए तुम्हें खुद को तैयार करने पड़ेगा। खुद आगे होकर ही तुम अपना कल्याण कर सकते हो, कोई गैर तुम्हारा कल्याण नहीं कर सकेगा। जब तक तुम स्वयं के प्रति जागरुक नहीं होओगे, कल्याण की बात केवल बात होगी। पहचानो अपने आपको, मैं कौन हूँ? मेरा क्या है? मुझे क्या करना है? अभी तक मैंने जो कुछ भी किया, वह मेरे जीवन की जड़ उपलब्धियाँ हैं; यहीं छूट जाने वाली हैं। अब मुझे वह करना है, जो मेरे जीवन की असली उपलब्धि है, जो मेरे साथ जाने वाली है; बस इतना विचार अभी बाकी है।