कनिंघम ने खोजे थे बौद्ध स्तूप, हम सहेज तक नहीं पाए
सतना | बेशक सरकार प्राचीन धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के बड़े-बड़े दावे करती है और हर साल करोड़ो रूपए खर्च भी करती है लेकिन यह सब कागजों में ही चल रहा है। सरकारी प्रयासों की असलियात जांचनी हो तो जिला मुख्यालय से तकरीबन 10 किमी दूर स्थित भरहुत पहुंचिए । कभी बौद्धाकालीन संस्कृति व धर्म का केंद्र रहे भरहुत गांव में आज ऐसे अवशेष भी बमुश्किल से नजर आते हैं जो इस बात को प्रमाणित करते हों कि भरहुत कभी बौद्ध धर्म के अनुयायियों का बड़ा केंद्र था।
सरकार यहां बिखरी पुरातात्विक व धार्मिक संपदाओं के संरक्षण के प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि भरहुत स्थित पहाड़ी की चोटी में आज भी एक विशाल शिलालेख का टुकड़ा लावारिस हालत में पड़ा है, लेकिन न तो स्थानीय प्रशासन शिलालेख के बचे टुकड़े को सुरक्षित रखवा सका है और न ही उसका शेष हिस्सा तलाशने में कोई रूचि दिखाई है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिस भरहुत की खोज एक अंग्रेज कनिंघम ने 1874 में की थी, उसे सरकार सहेजने तक में नाकाम साबित हो रही है।
भरहुत पहाड़ी बौद्धकालीन अवशेषों व रहस्यों से भरी हुई है। चोटी पर मौजूद विशाल शिलालेख के रहस्य को जहां नहीं सुलझाया जा सका है तो वहीं इसी पहाड़ी पर एक बड़ी व रहस्यमयी गुफा भी मौजूद है। राममूर्ति विश्वकर्मा ने बताया कि कई साल पूर्व ग्रामीणों के एक समूह ने गुफा के भीतर तक पहुंचकर गुफा का रहस्यसुलझाने का निश्चय किया । 6 ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई और एक दूसरे का हाथ पकड़कर चैन बनाते हुए गुफा में प्रवेश कर गए लेकिन आगे अंधेरा व सीलन के कारण दम घुटने लगा , साथ ही घुटनों तक पानी आ गया जिसके चलते ग्रामीणों को बीच से ही गुफा यात्रा रोकनी पड़ी। तब से लेकर फिर कभी किसी गांववाले की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह नीम अंधेरे में डूबी गुफा में प्रवेश कर सके।
प्रशासनिक स्तर पर भी गुफा को एक्सप्लोर करने की पहल कभी नहीं हुई। यदि गुफा के भीतर प्रचुर मात्रा में पानी है तो वह भी गुप्त गोदावरी की तरह जल प्रवाह वाली गुफा हो सकती है। यदि इसे दुरूस्त कर पर्यटन सुविधाएं विकसित की जायं तो यह जिलेवासियों के लिए एक रोमांचक पर्यटन स्थल बन सकता है। सांसद प्रतिनिधि व युवा समाजसेवी तरूण मिश्रा कहते हैं कि भरहुत से अंग्रेजों द्वारा बौद्धकालीन अवशेषों को लंदन ले जाने का मामला तो खूब उठाया जाता है लेकिन जो चीजें अभी भी भरहुत में मौजूद हैं उसके संरक्षण के लिए जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग कोई कदम नहीं उठाता है।
इसकी खोज भारतीय पुरातत्व के जनक एलेक्जेंडर कनिंघम ने सन 1874 में की थी। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि ईसा पूर्व दूसरी सदी की बौद्ध कला के जटिल उदाहरणों में से एक भरहुत भारत के ं महान बौद्ध स्थलों में से एक है। है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भरहुत में मूल स्तूप अशोक मौर्य ने तीसरी ईसा पूर्व में बनवाया था और दूसरी ईसा पूर्व शताब्दी में इसे बड़ा रूप दिया गया।जिस स्थान पर ये स्तूप स्थित है वह उस युग के प्रमुख राजमार्ग का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। भरहुत मूर्तियां भारत में बौद्ध कला और वास्तुकला के आरंभिक मूर्तिविहीन दौर की साक्षी हैं और इस तरह ये उप-महाद्वीप के आरंभिक कला इतिहास का एक अमिट हिस्सा हैं।
श्र्क्कत्र्ष्ठ ।क्कत्प् ख्न्श्र्शक्कद्धष्ट ल॰क्कत्प् ष्ठप्ल्दश्लक्क।र्त्त् द्यिं ।द्वष्ट्ववद्ध श्र्द्बन्न्श्र्
बेशक भरहुत कभी बौद्ध अनुयायियों का केंद्र रहा हो लेकिन विरासतों को संभालने में होने वाली सरकारी उपेक्षा से ये जगह अब पुराने वैभव और ठाट-बाट से एकदम जुदा वीरानगी में पड़ी है। यहां अब न तो मूर्तियां हैं और न ही कोई प्राचीन ढांचे, यहां तक कि एक अदद ऐसा संग्रहालय तक नही है जहां बौद्धकालीन संस्कृति की झलक मिलती हो। अगर यहां कोई संग्रहालय हो जहां कलकत्ता म्यूजियम से वापस लौआकर भरहुत के अवशेषों को रखा जाय तो ये एक बौद्ध पर्यटन स्थल के रूप में न कवेल विकसित हो सकता है बल्कि भरहुत को वह हक भी मिल जाएगा जिसका वो हकदार है।
फिलहाल कोई प्रस्ताव तो नहीं है लेकिन जिला पंचायत के नवीन भवन के लोकार्पण के दौरान सांसद ने भरहुत विकास पर चर्चा की है। हम पर्यटन स्थलों को विकसित करने के प्रति कटिबद्ध हैं। यदि ऐसा कोई प्रस्ताव आया तो उसे उच्च स्तरीय स्वीकृति के लिए शासन को भेजा जाएगा।
अजय कटेसरिया , कलेक्टर
भरहुत में हमने शुरूआती चरण में कुछ पर्यटक सुविधाएं विकसित की थीं। निश्चित तौर पर भरहुत को यदि पर्यटन सुविधाओं से लैस कर दिया जाय तो यह बौद्ध धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है। हम प्रयासरत हैं कि भरहुत विकिसत हो ।
इंजी. धर्मेंद्र सिंह, ईई पर्यटन विभाग
हम विगत कई सालों से भरहुत विकास की मुहिम चला रहे हैं। हजारों लोग अब तक हम युवकों द्वारा चलाए गए अभियान में हस्ताक्षर कर भरहुत के खोए वैभव को लौटाने की मांग का समर्थन कर चुके हैं। कुछ काम हुए हैं लेकिन संग्रहालय बनवाकर यहां के अवशेषों को लाने का काम अब तक नहीं हो सका है।
तरूण मिश्रा, संयोजक भरहुत विकास मंच