कृषि कानून: जब व्यापार नहीं होगा, टैक्स नहीं मिलेगा तो मंडी बंद होगी ही
सतना | संसद द्वारा किसानों के लिए बनाये गये 3 नए कृषि कानूनों को लेकर देश का किसान तो गुस्से में है ही अब इस व्यवसाय से जुड़े गल्ला कारोबारियों को भी समझ आ रहा है कि नये कानून उन्हें पूरी व्यवस्था से बाहर करने का रास्ता प्रशस्त करने वाले हैं। उनका कहना है कि कृषि सुधार के नाम पर सरकार किसानों को निजी बाजार के हवाले करने जा रही है और आने वाले समय में पूरे देश का कृषि उपज बाजार कुछ चंद लोगों के हाथ में होगा। मंडी के बाहर टैक्स मुक्त व्यवसाय से मंडी का राजस्व नहीं घटेगा बल्कि वह बंद हो जाएगी। व्यापारियों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि जिस व्यापारी से 10-20 परिवार जुड़े हैंं सरकार उन्हें बिचौलिया कहकर गाली दे रही है।
3 नए कानून कहने के लिये तो किसान के लिये हैं पर विशेषज्ञों और किसानों की राय में सरकार ने इस कानून के जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है कि वे बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं। सरकार कह रही है कि मंडियों में सुधार के लिए यह कानून हैं। लेकिन, कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है।
यह तर्क और तथ्य बिल्कुल सही है कि मंडी में पांच आढ़ती मिलकर किसान की फसल तय करते थे। किसानों को परेशानी होती थी। लेकिन कानूनों में कहीं भी इस व्यवस्था को तो ठीक करने की बात ही नहीं कही गई है। मंडी व्यवस्था में कमियां थीं। बिल्कुल ठीक तर्क है। किसान भी कह रहे हैं कि कमियां हैं तो ठीक कीजिए। इस मामले में व्यापारियों का डर है कि किसान अगर सरकारी मंडियों के बाहर उत्पाद बेचेंगे तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा। व्यवसाय से जुड़े व्यापारी ही नहीं उनके कारण रोजगार पा रहे लोग भी बेरोजगार हो जाएंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित खरीद प्रणाली खत्म हो जाएगी।
पूरा व्यवसाय कुछ हाथों में देने का प्रयास
बड़े गल्ला कारोबारीकहते हैं कि इन कानूनों का किसान से अधिक बुरा प्रभाव गल्ला कारोबार से जुड़े व्यापारियों पर पड़ने वाला है। उनका आरोप है कि सरकार चंद लोगों के लिये बिना किसी से सलाह लिये कानून बना रही है। ऐसे में आने वाले समय में देश के कुछ चंद कार्पोरेट घराने पूरे व्यवसाय का संचालन करेंगे। वहीं कृषि उपज खरीदी की कीमत तय करेंगे और बाद में जैसी मर्जी होगी उसकी बिक्री करेंगे। सीधी बात यह है कि सरकार कृषि सुधार के नाम पर किसानों को निजी बाजार के हवाले कर रही है। हाल ही में देश के बड़े पूंजीपतियों ने रीटेल ट्रेड में आने के लिए कंपनियों का अधिग्रहण किया है। सबको पता है कि पूंजी से भरे ये लोग एक समानांतर मजबूत बाजार खड़ा कर देंगे। बची हुई मंडियां इनके प्रभाव के आगे खत्म होने लगेंगी।
सरकार चंद लोगों के इशारे पर कानून बना रही है। कृषि उपज कारोबार चंद हाथों को सौंपा जा रहा है। वही आगे इसका संचालन करेंगे। किसान से अधिक व्यापारी प्रभावित होंगे। लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। हम सरकार द्वारा बार-बार व्यापारियों को बिचौलिया कहने की निंदा करते हैं।
गोविन्द बड़ेरिया, कृषि उपज व्यवसायी
लाइसेंस लेकर मंडी में काम करने वाला कारोबारी मिलर और किसान के बीच की कड़ी है। कम से कम उसे गाली तो न दी जाए। यदि मंडी नहीं रहेगी तो प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तब बड़े कार्पोरेट घराने ही अपनी कीमतों और शर्तों पर खरीदी करेंगे। किसान के साथ ही व्यापारी को ही नुकसान होगा।
सुवोध गोयल, वरिष्ठ कृषि उपज व्यापारी
इन कानूनों से मंडियों का राजस्व कम नहीं होगा बल्कि टैक्स न आने से मंडी ही समाप्त हो जाएगी। सरकार कह रही है कि मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लाए हैं जबकि कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है।
राजेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष कृषि उपज व्यापारी संघ
सरकार नित नये इतिहास बना रही है और इस बार इसके लिये किसान को चुना गया है। हमारी मांग है कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था यथावत रखने का आश्वासन नहीं उसे लिखित चाहते हैं। हमारी यही मांग है कि यह काला कानून सरकार वापस ले।
जगदीश सिंह, अध्यक्ष भाकियू सतना।