कोविड प्रोटोकाल का पालन नहीं, टॉयलेट में बैठकर यात्रा कर रहे प्रवासी श्रमिक
सतना | कोरोना की दूसरी और भयावह लहर ने एक बार फिर से प्रवासी मजदूरों को उसी एक साल पुरानी स्थिति में ला दिया है। महानगरों में काम-धंधे की तलाश में गए श्रमिकों का पलायन फिर ट्रेनों के माध्यम से दिख रहा है। मुंबई,गुजरात से आने वाली ट्रेनें इस कदर पैक है कि यात्रियों को पैर रखने तक को जगह नहीं मिल रही है और टॉयल तक में बैठ कर सफर कर रहे हैं। श्रमिकों को भय है कि कहीं अचानक फिर से ट्रेनें न बंद हो जाएं। पिछले साल 21 मार्च से कोविड -19 के फैल रहे संक्र मण को रोकने के लिए नियमित ट्रेनें बंद कर दी गई थी तो लॉकडाउन के दौरान फंसे श्रमिक पैदल ही अपने घरों की ओर निकल गए थे। लेकिन इसबार ट्रेनें चल रही हैं और श्रमिकों को किसी भी हालत में अपने-अपने घर पहुुंचने की चिंता दिख रही है।
15 घंटे से कुछ खाया पिया नहीं
मुंबई से आने वाली डाउन गाड़ी संख्या 02322 मुबंई-हावड़ा मेल स्पेशल में श्लीपर कोच में टॉयलेट के अंदर बैठ कर सफर कर रहे यात्रियों का कहना था कि 15 घंटे से ज्यादा समय होने को है। टेÑन में भीड़ इस कदर है कि किसी भी स्टेशन में खाने पीने का सामना लेने तक नहीं उतर पाए हैं। टॉयलेट में इस्तेमाल होने वाले पानी को पीकर सफर कर रहे। अगर नीचे उतरतें है तो फिर चढ़ नही पाएंगे।
कोरोना गाइड लाइन सिर्फ कागजों में
कोरोना काल में केवल स्पेशल ट्रेनें ही दौड़ रही हैं। इन ट्रेनों में रेलवे बोर्ड ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए गाइड लाइन तैयार की है लेकिन इन गाइड लाइन का पालन नहीं हो रहा है। ट्रेनों के अंदर मास्क व सोशल डिस्टेसिंग के नियमों का पालन नहीं हो रहा है। कहनें को तो रेलवे ने केवल कन्फर्म टिकटधारी यात्रियों को ही सफर की अनुमति दी है लेकिन जिस तरह से ट्रेनों के गेट व टॉयलेट में बैठ कर लोग सफर कर रहे हैं उससे नियमों का पालन कितना हो रहा है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
नहीं कैंसिल होगी ट्रेन
शुक्रवार को मंडल रेल प्रबंधक संजय विश्वास ने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि अभी रेलवे बोर्ड द्वारा कही से भी ट्रेनों के बंद करने के संबंध में कोई भी दिशा निर्देश नहीं है। मुंबई से आने वाली ट्रेनों में भीड़ है लेकिन कुछ स्पेशल ट्रेनें और चलाई जा रही हैं। यात्री घबड़ाएं नही।
जिस फैक्टरी में काम करता था वहां कहा गया कि लॉकडाउन के कारण आप अपने घर चले जाओ। बच्चे-सयाने सब ने मजबूरी में टॉयलेट के लिए यूज होने वाला पानी पिया है। वह इतना गर्म है कि मुंह में लगाया नहीं जा रहा था फिर भी पीना पड़ रहा है।
राजू कुमार
लॉकडाउन के बाद मुबंई काम पर वापस गया था। मालिक ने कहा कि वह हमें वेतन नहीं देगा, लेकिन हमारे लिए खाने का इंतजाम कर देगा। हम क्या कर सकते हैं? हम इंतजार नहीं कर सकते, हमें जाना ही होगा। मैं नहीं जानता कि गांव में काम मिलेगा या नहीं, लेकिन खेती से जुड़ा कोई काम कर लेंगे।
संजीव कुमार