सौ साल में तैयार होते हैं पेड़ आपने कुछ फुट सड़क चौड़ी करने मिनटभर में काट दिया
सतना | गत दिवस एनएच 39 स्थित बाबूपुर ग्राम पंचायत के देवरा व सरिसताल गांव में 30 हरे भरे वृक्षों का कत्ल ठेका कंपनी थ्री जी द्वारा कर दिया गया। बेशक हरे-भरे पुराने वृक्षों की कटाई के लिए जरूरी अनुमतियां जारी की गइ्रं है लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि, काटे गए पेड़ अंग्रेजों के जमाने के थे। उनकी उम्र ग्रामीणों के हिसाब से सौ साल से कम नहीं है। एक पौधे को वृक्ष बनने में सौ साल लग जाते हैं और विकास की धुन में हाइवे चौड़ा करने के लिए उन्हें एक मिनट में इलेक्ट्रिक आरी से काट दिया गया। जिन पेड़ों को काटा गया वो न केवल पुराने और जनोपयोगी थे बल्कि औषधीय भी थे।
अर्जुन या कहुआ के वृक्षों की मान्यता है कि उसकी छाल से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ वर्षाें पहले तक हाइवे के किनारे उमरी से सितपुरा तक हाइवे के किनारे बड़ी संख्या में अर्जुन के पेड़ पाए जाते थे। मधुमेह पीड़ित मरीज उसकी छाल और लकड़ी का उपयोग बतौर इलाज करते थे। अब न तो अर्जुन के पेड़ बचे और न ही काटे गए पेड़ों के स्थान पर अर्जुन के ही पेड़ लगाए जाने की नीयत है।
सड़क बनाने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी को चाहिए कि जिस प्रजाति के पेड़ काटे जाएं उसी प्रजाति के पौधे दस गुना अधिक संख्या में चिन्हित स्थान पर लगाए जाएं। क्यों अभी लगाए जाने वाले पौधों को वृक्ष बनने में 50 से सौ साल का वक्त फिर लगेगा। विकास के नाम पर प्रशासन जितनी मुस्तैदी से पेड को काटने की अनुमति दे देता है उतनी मुस्तैदी पेड़ों को तैयार कराने के प्रति नहीं दिखाता है। इस बात को जानकार भी स्वीकारते हैं कि विकास कार्यों के लिए पेड़ों को काटने की जरूरत यदि पड़ती भी है तो इसके एवज में उसी किस्म के पेड़ों को तैयार किया जाना चाहिए ताकि विकास और पर्यावरण के बीच का संतुलन बना रहे।
पेड़-पौधे मनुष्यों के लिए ही नहीं, पशु-पक्षियों के लिए भी अत्यत आवश्यक है । इनकासंरक्षण बेहद आवश्यक है। सरकार को इस संबंध में कारगर रणनीति बनानी चाहिए। पेड़-पौधे हमारे पूज्य हैं, हमारे: अन्नदाता है, हमारा पालन-पोषण करतै हैं, हमारे जीवनदाता हैं तथा अनेक प्रकार से हमारा उपकार करते हैं । अत: उनके संरक्षण में ही हमारा कल्याण है ।
रामसुख शर्मा, सेवानिवृत्त एसडीओ
औद्योगिक. इकाइयों की चिमनियों से निकलता धुआं वातावरण को प्रदूषित कर .रहा है । शहरों में वाहनों की निरंतर बढ़ती संख्या तथा उनसे निकलने वाले धुएं से अशुद्ध वायु में सांस लेना दूभर हो जाता है जिसके कारण खांसी, दमा, कैंसर जैसे प्राण-घातक -रोगों में वृद्धि हो रही है । इनके लिए वृक्ष संजीवनी बूटी का काम करते हैं। अत: इन्हें बचाएं।
अजय तिवारी, पर्यावरण प्रेमी
नीम, बरगद,कहुआ , पीपल जैसे वृक्ष औषधि हैं। यही कारण है कि हमारे पूर्वज इनका रोपण करते थे लेकिन विकास के नाम पर इन्हें काट दिया जाता है। यदि कहीं पर ऐसे वृक्षों को काटा भी जाता है तो प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसी महत्व के पौधे लगाकर पेड़ तैयार किए जाएं।
डॉ. डीआर शर्मा, आयुर्वेद चिकित्सक
जैसे-जैसे उद्योगों व वाहनों की संख्या बढ़ रही है वैसे वैसे वृक्षों को आवश्यकता भी बढ़ रही है लेकिन विडंबना है कि वृक्षों की संख्या घटती जा रही है। इसके लिए प्रशासन को ठोस व कारगर रणनीति बनानी चाहिए और ठेका कंपनियों को सख्ती से नए पेड़ तैयार करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
जितेंद्र दीक्षित, अभिनेता