स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे: 45 अस्पतालों में 571 डॉक्टरों के पद, पदस्थ केवल 119
रीवा | जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में बुखार तक का इलाज नहीं हो पा रहा है। देखने के साथ ही मरीजों को मेडिकल कॉलेज रेफर किया जा रहा है। आलम यह है कि जिले की 45 अस्पतालों में 571 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन इसकी एवज में महज 119 डॉक्टर ही पदस्थ हैं। इसके अलावा पैरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है। ऐसे में जिलेवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना दिवा स्वप्न की तरह ही है।
जिले वासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए 9 सीएचसी, 35 पीएसची और एक जिला अस्पताल संचालित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य ग्रामीण अंचलों के मरीजों को समीपस्थ स्थान में उपचार दिया जा सके हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। बताया जा रहा है कि जिले के इन सभी 45 अस्पतालों में 571 चिकित्सकों के पद स्वीकृत किए गए हैं। लेकिन जिले में महज 119 चिकित्सक ही तैनात हैं। इनमें से भी ज्यादातर चिकित्सक मरीजों का उपचार करने की वजाय शासन द्वारा चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं में व्यस्त हैं। मरीजों को देखने का उनके पास समय ही नहीं बच रहा है। यही वजह है कि ग्रामीण अंचलों की अस्पताल में बुखार तक का इलाज नहीं हो पा रहा है। चिकित्सकों की व्यस्तता के कारण ऐसे मरीजों को भी जिला अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है।
जिला अस्पताल में 34 विशेषज्ञ
जिला अस्पताल में मेडिसिन, अर्थो, गायनी, डेंटल, रेडियोलॉजिस्टि सहित अन्य विभागों में सामान्य चिकित्सकों के साथ ही विशेषज्ञों की कमी है। कहने को अस्पताल में विशेषज्ञ समेत 34 चिकित्सक पदस्थ हैं। ज्यादातर चिकित्सक अस्पताल प्रबंधन की व्यवस्था के साथ बीआइपी ड्यूटी में व्यस्त रहते हैं। अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ की कमी के चलते सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं भगवान भरोसे है।
इन अस्पतालों में सबसे अधिक समस्या
त्योंथर में सिविल अस्पताल स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। सिरमौर के चिकित्सक एसएन पांडेय को बीएमएओ का प्रभार दिया गया है। बीएमओ अस्पताल को महज एक या दो घंटे ही समय दे पा रहे हैं। शेष समय योजनाओं के दस्तावेज तैयार करने और निजी क्लीनिक में निकल जाता है। इसके अलावा उन्हें सिरमौर की जिम्मेदारी रहती है। त्योथर अस्पताल में महज तीन चिकित्सक हैं। जबकि इससे जुड़े चाकघाट, गढ़ी, सोनौरी में पीएचसी संचालित हो रही है। वहां पर भी स्टाफ नहीं है।
पैरामेडिकल स्टाफ की भी है कमी
जिला अस्पताल समेत सीएचसी-पीएचसी में चिकित्कसों के अलावा पैरामेडिल स्टाफ की कमी है। जिला अस्पताल में तीन ड्रेसर से व्यवस्था चल रही है। तीन में यदि कभी एक अवकाश पर चला जाता है तो अस्पताल में ड्रेसर नहीं रहता है। तीन शिफ्ट में एक-एक ड्रेसर की ड्यूटी लगाई जाती है।
धूल फांक रहे मेडिकल उपकरण
जिला अस्पताल समेत सीएचसी-पीएचसी, फीवर क्लीनिकों पर शासन ने लाखों रुपए खर्च कर मेडिकल स्टूमेंट खरीदे गए हैं। इसमें मुख्य रूप से आटोग्लेब, स्टोमैथोलाइजर, इंट्रोवेटर, पल्सआक्सीमीटर, रेडियंटवारमर सहित कई अन्य प्रकार की मशीनें व उपकरण शामिल हैं। लेकिन स्टाफ की कमी के कारण इन उपकरणों का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि अस्पतालों के स्टोर रूप में पड़े ये उपकरण धूल फांक रहे हैं।
जिले में चिकित्सकों के 65 फीसदी के करीब पद रिक्त हैं। लेकिन इसके बाद भी ग्रामीण से लेकर जिला स्तर तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने का प्रयास रहता है। गंभीर बीमारी के बाद भी मरीजों को मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है। रिक्त पदों की जानकारी शासन के पास भेजी गई है। उम्मीद है जल्द ही रिक्त पदों पर चिकित्सकों की पदस्थापना हो जाएगी।
डॉ. एमएल गुप्ता, सीएमएचओ रीवा