दीनदयाल अंत्योदय समितियां शहरों में गठित करने की तैयारी में सरकार

भोपाल | भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव के लिए अपनी बिछात बिछाना शुरू कर दी है। इसकी तैयारी में भाजपा नेता जोर-शोर से जुटे हुए है। नगरीय निकाय चुनाव से पहले सरकार सभी शहरों में दीनदयाल अंत्योदय समितियों का गठन करने की तैयारी कर रही है। इस समितियों पर निचले स्तर पर सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होगी। इतना नही नहीं, योजनाओं के क्रियान्वयन में गड़बड़ी रोकने और मॉनिटरिंग का अधिकार भी समितियों को दिया जाएगा। इससे पहले शिवराज सराकर के तीसरे कार्यकाल के अंतिम साल (2018) में ऐसी समितियों का गठन करने की तैयारी हुई थी।

सूत्रों का कहना है, वार्ड स्तर से लेकर नगर निगम तक अंत्योदय समितियों का गठन होगा। समितियां वार्ड स्तर से लेकर शहरों की आवश्यकताओं के अनुसार विकास का खाका भी तैयार करेंगी, लेकिन मूल काम सरकार की योजनाओं का लाभ निचले स्तर पहुंचाने की रहेगी। प्रधानमंत्री आवास योजना खाद्य पर्ची का वितरण जैसी बड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन की मॉनिटरिंग करने का काम भी इनका होगा।

सूत्रों का कहना है, इसका मकसद केंद्र व राज्य सरकार के कामों पर नजर रखना और रिपोर्ट सरकार को पहुंचाना है। राजनीतिक नजरिए से देखें, तो बीजेपी समितियों के माध्यम से शहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहती है। दरअसल, यह प्लान आरएसएस का है। शिवराज सरकार के चौथी बार सत्ता में आने के तत्काल बाद इसका एक्शन प्लान तैयार करना शुरू कर दिया गया था। इससे सत्ता और संगठन के समन्वय से जिला और तहसील स्तर पर समितियों का गठन कर संघ ने मिशन - 2023 का दूरगामी लक्ष्य भी तैयार किया है।

पटवा सरकार लाई थी योजना
दीनदयाल अंत्योदय समिति की योजना 1990 में सुंदरलाल पटवा की सरकार के समय तैयार की गई थी। तब मध्य प्रदेश भाजपा के पितृ पुरुष स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे की सलाह के बाद मुख्यमंत्री पटवा ने चार कुशल मंत्रियों, तत्कालीन सहकारिता मंत्री लक्ष्मी नारायण शर्मा, वित्त मंत्री रामहित गुप्त, वन मंत्री निर्भय सिंह पटेल और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भेरूलाल पाटीदार को पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु मॉडल के अध्ययन के लिए कोलकाता भेजा था।

कागजों में सीमित रह गई योजना
15 साल बाद सत्ता में आई कमलनाथ सरकार ने अंत्योदय समितियों के गठन के तर्ज पर ही शहरी क्षेत्रों के लिए योजना बनाई थी, जिसके तहत जिला स्तर पर उपभोक्ता क्लब और उपभोक्ता मित्र योजना शुरू करने की थी। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने इसका खाका तैयार भी कर लिया था, लेकिन सरकार गिर जाने के बाद यह योजना कागजों में ही सीमित होकर रह गई।