दिव्य विचार: जो दिखता है वह सच नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: जो दिखता है वह सच नहीं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सन्त कहते हैं जो दिखता है वह सच नहीं वह तो सच का प्रतिबिम्ब मात्र है, असली सच तो अंदर है जो अदृश्य बना हुआ है। उसे पहचानो। तुम्हारी दृष्टि में सच क्या है? ये रूप-रंग, ये धन-वैभव, ये भोग- विलासता के साधन क्या यही सच है? यदि ये सच है, तुम्हें यही सच दिखता है तो समझना अभी तुमने सच को पहचाना नहीं। ये सब तो सपना है। सपने को सच मानने वाला अज्ञानी है। पर मुश्किल ये है कि जब तक मनुष्य नींद में रहता है तब तक उसे सपना ही सच दिखता है। नींद खुलने पर पता लगता है, अरे! ये तो सपना था, व्यर्थ का सपना था। नींद खुलने पर तुम्हें पता लगता है कि ये सपना था। सच तो अब जो सामने दिख रहा है; वह है। अभी तक मैं जिस दुनिया में था वह सब कुछ सपना था। बंधुओ ! एक सपना आप नींद में देखते हैं जो घण्टे-आध घण्टे का होता है और एक सपना वह है जो सारी जिंदगी देखते हैं। जीवन पर्यन्त चलने वाला सपना तब टूटेगा जब तुम्हारे भीतर की नींद खुलेगी। नींद टूटेगी, तुम्हारी अंतर-आत्मा जागेगी तब तुम्हें सच की पहचान होगी। जो दिख रहा है वह सच नहीं है। अच्छा बताओ बाप बड़ा कि बेटा ? कौन बड़ा है? बाप; पहले बाप पैदा हुआ बाद में बेटा। बेटा होने के पहले वह आदमी बाप था क्या? बोलो गणेश जी ! कौन बड़ा? बेटे ने बाप को जन्म दिया कि बाप ने बेटे को ? सोच कर बोलना। बेटे ने बाप को जन्म दिया और बाप ने बेटे को जन्म दिया इसलिए जो कुछ भी समझना सापेक्ष ढंग से समझना। बेटा नहीं होता तो बाप नहीं होता और बाप नहीं होता तो बेटा नहीं होता; ये जीवन की सच्चाई है।