दिव्य विचार: कुटिल व्यक्ति से रहें दूर- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बंधुओं ! इस तरह की कुटिलता, इस तरह की चालबाजियाँ कई तरह से लोग करते हैं। कुटिलता शब्द बहुत व्यापक है। कुटिलता में व्यक्ति जालसाजी करता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के प्रपंच रचता है, कुटिलता से ग्रस्त व्यक्ति कई तरह के षडयंत्र रचता है और फरेब करता है। ये सब कुटिलता के अंतर्गत आते हैं। एक बात मन में धार लो मैं अपने जीवन में किसी के साथ इस तरह की कुटिलता नहीं करूँगा जिससे उसे कोई हानि उठानी पड़े। चाहे आर्थिक हानि हो, चाहे सामाजिक हानि हो या अन्य किसी प्रकार की हानि उठानी पड़ती हो। मैं ऐसी कुटिलता अपने जीवन में कभी नहीं करूँगा जिससे किसी को हानि उठानी पड़े। कुटिलता क्या है इसको बताने की ज्यादा जरूरत नहीं है। सब जानते हैं। एक जिसकी चाल कुटिल, जिसकी ढाल कुटिल, जिसकी मति कुटिल यानि जिसकी बुद्धि कुटिल, जिसकी प्रवृत्ति कुटिल जो सब जगह केवल कुटिल, कुटिल, कुटिल यानि टेढ़ी दृष्टि से देखे वह कुटिल है। कुटिल व्यक्ति हर चीज में अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। ऊपर से बड़ा अच्छा दिखता है लेकिन अंदर से बहुत कुटिल । सन्त कहते हैं किसी भी व्यक्ति के बाहरी आचरण से उसका अनुमान मत लगाना। वस्तुतः व्यक्ति का भीतरी अभिप्राय ही उसकी पहचान का आधार होता है। बाहर से मीठा आदमी अंदर से बहुत बड़ा धोखेबाज भी हो सकता है इसलिए उसे पहचानने की कोशिश करो और जब तक किसी को पूरी तरह पहचान न लो तब तक किसी पर भरोसा भी मत करो। पूरी तरह पहचानने के बाद ही किसी पर भरोसा करना चाहिए अन्यथा लोग कई बार धोखा खा जाते हैं। धोखा देने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं और धोखा खाने वाले लोग भी इस दुनिया में बहुत हैं। इनसे अपने आपको बचाइए। जीवन में कभी किसी प्रकार की कुटिलता नहीं करें।