दिव्य विचार: देह के आकर्षण में न पड़ें - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज
मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि देह-दृष्टि से ऊपर उठने के बाद भेद-विज्ञान से सम्पन्न साधक उस परम दृष्टि को प्रकट करते हैं। आज लोगों की दृष्टि, देह-दृष्टि है, आत्म-दृष्टि है ही नहीं और इसी कारण देहासक्ति होती है। देह से आकृष्ट होकर मनुष्य कदाचार अपनाता है, यौन दुराचार करता है। आज यौन अपराध हो रहे हैं, काश ! व्यक्ति अपने आपको पहचानता। लोगों का आकर्षण शरीर है, आत्मा को पहचाना ही नहीं। आत्मा को पहचान लोगे तो देहाकर्षण छूट जाएगा, देहाकर्षण छूटते ही तुम्हारे जीवन की धारा बदल जाएगी। देखिए देह के आकर्षण और आत्मा के आकर्षण में कितना अंतर होता है। देह के आकर्षण में भी आकर्षण है और आत्मा के आकर्षण में भी आकर्षण है। रामचन्द्र जी के प्रति सीता का आकर्षण था तो सूर्पनखा भी उनके प्रति कुछ पल के लिए आकृष्ट हुई थी पर दोनों की दृष्टि में जमीन आसमान का अंतर था। सीता ने रामचन्द्र जी को पति के रूप में ही नहीं परमेश्वर के रूप में देखा, सीता-राम का जो सम्बन्ध था वह आत्मिक स्तर का सम्बन्ध था और सूर्पनखा रामचन्द्र जी की ओर आकृष्ट हुई तो उनके रूप पर मुग्ध होकर। ये कथा आप सुनोगे तो बड़े आश्चर्यचकित हो जाओगे। सूर्पनखा का बेटा शम्बुकुमार बांस के बीड़ों में छिपकर चन्द्रहास नामक खड्ग की सिद्धि कर रहा था। सूर्पनखा रोज उसे भोजन देने आती थी। राम-लक्ष्मण भी उसी वन में आए हुए थे। लक्ष्मण घूमने के लिए गए तो उन्हें एक दिव्य खड्ग लटका हुआ दिखाई पड़ा। जब व्यक्ति के पुण्य का उदय होता है तो अनायास ही बहुमूल्य चीजें उन्हें प्राप्त हो जाती हैं। शम्बुकुमार जिस खड्ग को सिद्ध करने के लिए तपस्या कर रहा था, वह चन्द्रहास खड्ग प्रकट हो चुका था। लक्ष्मण ने जैसे ही उसे देखा तो उसका आह्वान किया।